सामुद्रिक शास्त्रम् | samudrik shastrm

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samudrik shastrm  by गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. सान्वयनाषाटीकासमेतम । (३) अनयोः लक्षण क्रियते तत इह जनोपरतिः स्थाद ) जो इन दोनोंके लक्षण करेजायँ तों इस लोक सबका उपकार होय ॥ ७ ॥ .. इत्थे विधिन्त्य खुवरे स्वडदि सपुद्ेण सम्यगवगम्य । नुल्रीउशणशाख्ं रचयाओक्रे तदादि तथा ॥ ८ ॥ अन्वयार्थो-( समुद्रेण इत्थे सुवरे स्वहृदि विविन्त्य सम्यक च अवगम्प ) ससुद्रने श्रेष्ठ अपने हृदयमें विचार करके और अच्छे भकार समझिके ( चृखी- लक्षणशाख्रं तथा तदादि रचयांचक्रे ) मदुष्य आर ख्रीके हैं ठक्षण जिसमें. ऐसा शाख्र और आदिगें मदुष्यके हैं लक्षण जिसमें सो रचा अर्थाद्‌ बनाया॥ ८ तदाप नारद्लशकवरा हसा एडव्यूपण्मुखप्रसुखः राचत क्राचत्रस ड्त्पुसुपत्राउश्षण 1 काश्तू ॥ ९ ॥ अन्वयार्था-( तदापि नारदलक्षकवराहमाण्डव्यपण्सुखमसुखेः मसज्ञाद , पुरुषस्नीलक्षणं किंचित्‌ कायेव रचितशू-) तब भी नारद छुनि जानने- वाछे और वराह मांडव्य स्वामिकार्चिक आदिकोंने असज्जसे पुरुष और स्रीके लक्षणों करके युक्त कुछ कुछ शाख कहीं बनाया ॥ ९ ॥ तंदनन्तरपि सुषने रुपातं क्‍्रीपुंसलसणज्ञानम्‌ । ढुबाध तन्महादिति जडमतिभ खण्डतां नातम्‌ ॥ १० ॥ अन्वयाथा-( तदनन्तरमु इह खुवने ख्रीपुंसलक्षणज्ञावं रूपातमू अति- दुर्बोध॑ तद्‌ महत्‌ जडमतिहिः खण्डतां नीवमू ) ताके पीछे इस छोकमें खी पुरुषके ठश्षणोंका ज्ञान प्रगट हुआ-तिससे वह बड़े जानके कठिन होनेसे जडबुद्धियोंने खंडित कर दिया ॥ ३० ॥ आयाजनूपसुमन्तृप्रतानामधतताप दस्त । सााइकशाइाण माया गहनान तने परदे ॥ 33 ॥ अन्वयोथो-( भीमोजनूपसुमन्तमशुतीनासू अपि अगतः सामसुदिक- - शाख्नागे विद्यन्ते ) श्रीमाचू भोज ओर सुमन्त भादि राजाओंके आगेभी सासुद्रिक शाख थे ( मायः तानि पर गहनानि सन्ति ) परन्तु वे बहूंधा- करिके अत्यन्त कठिन और गढ थे ॥ 33 ॥




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-09 10:25:35
    Rated : 8 out of 10 stars.
    category of this book is "Jyotish"
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