कबीरकसौटी | Kabirkasoti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kabirkasoti by गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas

Add Infomation AboutGanga Vishnu Shrikrishnadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कर्बारकसोदी । (१५१ पहुरा दिये फरूठ साल पहुराना सूठगये ॥ सोचतेथे कि अगर सुकुट उतारकर पहरावें - तो दुबारा ख्रान कराना पड़ेगा ॥ इसी सोचमें गड़गाप हो रहे थे इतनेमें कबीरजीने डचोटीक़े वाइरसे आवाज देकरकदा ॥ किदेस्वार्माजीघुंडी खसोछकर पहुरादोतव स्वादीजीने जाना कियशतोपणेत्रह्म दे जो अंतगंतकी तब जानताहे ॥ डयोढी परदा दूर करके आसन दिया और अंकमाल किया ॥ स्वपी घुंडीखोछके तब मारा गठडार । गररबदास इस सजनकोजानतदे कर- : तार ॥ ड्योडीपरदा दूरकर लावा अंगढ्याय ॥ गरीबदास गुजरी वहुत बढ़ने बदुनामिछाय ॥ मनकीएजा तुमल्खीं सुकुट माउपरवड् ॥ गरावदास गातका छख कान नरन कोन मेज ॥ आये कथा स्वाजीत पंडितकी बहुत हें मगर थोडासा . प्रहंग डिडाहे ॥ सवाजीत जब अपनी माके उपदेश दाशीजीमें आये तो उतकेसाथपुस्तक बेलॉपर ठदेहुयेये । नीरु: जोठाहाकी ठडकी कुवेपर जठ सर रदीयी ॥ पंडितजीन उससे पूछा कि कबीरका परकहां हें उडकीने नवाव दिया कवीरका पर शिखर है जहांसठेहली गेठ पांव न टिद्दे पिपीछिका पंडितलादेवेला। पंडितने जाना कि यह ठड़की जरूर कबीरको जानती होगी ॥ उसने एक पानीका छोटा भरकर उस लड़कीके पास दिया




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now