सन्त वाणी | Sant - Vani

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Sant - Vani by आचार्य काका कालेलकर - Aachary Kaka Kalelkarवियोगी हरि - Viyogi Hari

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वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घट-घट ब्यापक राम ६. हर घट में सुरत की गोपी है तर घट-घट में गोपिका-विहारी कृष्ण मेरे राम का अ्रमर ठोर तो हर घट के श्रन्दर है । ७. श्रजब रददस्य हे | खालिक में यद्द सारा खलक़ समाया हुआ है और ख़लक में मेरा खालिक् हमें तो दर घट में यही अजब लीला नजर श्रा रही हे | ८. बाबा तुम तो सदा उस श्रह्लाद के ही गुण गाश्ो जो सचके अन्तर में रम रहा हे | ६. मेरे पूर्णत्रह्म स्वामी कया कहूँ तेरी महामहिमा को | घन्य हर पलक और हर नजर में तेरा दशन मिल रहा है । १०. उस देवता का मन्दिर तेरे दिल के श्रन्द्र ही है-- उसकी तू सेवा श्रौर उसी की पूजा कर । क्‍या तेरा दरेक श्वास इसका साक्षी महीं है १ ११. अनेक कर्त्तार तो हैं नहीं सरजनदार स्वामी तो एक दी दे । दर्पण के हर टुकड़े में सूरत तो एक ही नजर श्राती है ।




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