आत्म - साक्षात्कार का विज्ञान | Atma Sashatkar Ka Vigyan

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अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश्व की हिन्दु धर्म भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है आज समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं उसका श्रेय जाता है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को, इन्होंने वेदान्त कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावन

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावन्ना श्रील प्रभुपाद कौन हैं ? प्राय: यह प्रश्न किया जाता है और ऐसे प्रश्न का उत्तर देना सदैव कठिन काये होता है। इसका कारण यह था कि श्रील प्रंभुपाद सदैव अभिसामयिक उपाधियो से मुक्त रहे । भिन्न-भिन्न अवसरों पर लोगो नें उनको एक विद्वातु, एक दार्शनिक, एक सांस्कृतिक राजदूत, एक सफल लेखक, एक॑ घामिक नेता, एक प्रामाणिक गुरु, एक सामाजिक आलोचक भौर एक पवित्न सन्त की उपाधियो से सम्बोधित किया । सत्य तो यह है कि उनमें उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त और भी कुछ था । निश्चय ही किसी ने उनको “आधुनिक ढोगी गुरु” जैसा नहीं समझा, ऐसे गुरु जो पूर्व के आध्यात्मिकता के थोथे एवं अप्रमाणिक सस्करणों के साथ पाश्चात्य देशो मे पधारे । इसके पीछे उन तथाकथित गुरु वर्ग का उद्देश्य था हमारी तात्कालिक माँग को सन्तुष्ट करना एवं आध्यात्मिक जीवन से अनभिज्ञ लोगो का शोषण करना । किन्तु श्रील प्रभुपाद गहन बौद्धिक स्तर एवं आध्यात्मिक संवेदनशीलता से युक्त एक सच्चे साधु थे 1 उनके मन मे इस वत्त॑रमान समाज के प्रति जिसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण का पूर्णतया अभाव है, अत्यधिक संवेदना एवं दया का भाव था । मानव समाज को प्रकाश प्रदान करने हेतु, श्रील -प्रभुपाद ने भारत के महान गाध्यात्मिक प्राचीन ग्रन्थो के अनुवाद एवं संक्षिप्त अध्ययन-सार के रूप मे लगभग अस्सी ग्रन्थो की रचना की । उनकी साहित्यिक रचनाओं का अंग्रेजी भर अनेक चिदेशी भाषाओ में मुद्रण किया जा चुका है । इतना ही नहीं सन्‌ १९४४ मे श्रील प्रभुपाद ने अकेले ही अग्रेजी पत्रिका “बैक टू गॉड हेड” का प्रकाशन आरम्भ किया, जिसकी केवल अंग्रेजी भाषा मे ही प्रति माह पाँच लाख से अधिक प्रतियाँ वितरित की जाती है । प्रस्तुत ग्रन्थ के पृष्ठो मे भी श्रील प्रभपाद उसी सन्देश को प्रस्तुत करते हैं, जिसे महर्षि व्यासदेव ने हजारो वर्ष पूर्व लिपिबद्ध किया था और जो प्राचीन भारत के वैदिक साहित्य का सन्देश है । जैसा कि हम स्वय अवलोकन करेंगे कि प्रस्तुत ग्रन्थ मे श्रील प्रभुपाद श्रीमदुभगवद्गीता, श्रीमदुभागवत एव अन्य पुरातन वैदिक साहित्य से ही निर्वाध रूप से प्राय: उद्धरण देते है । वे हिन्दी भाषा के माध्यम से भी उसी चिरस्थायी शाश्वत ज्ञान का प्रसारण करते है, जिसे अन्य महान्‌ सिद्ध आचायों द्वारा लाखो वर्षों से किया जा रहा है। यह ऐसा ज्ञान है जो हमारे भीतर स्थित आत्मा के रहस्य, प्रकृति और ब्रह्माण्ड के रहस्य और बाहर एवं हृदय मे स्थित परमात्मा रूपी श्रीमदभागवतु कें रहस्यो का उद्घाटन करता है । श्रोल प्रभुपाद पन्द्रह ही हे प्र दो रविडजन सकें क हर बज कनर न हे | € <ँ +य « 2 रा, की“ के ३. कै # है मी है. अब. _ -. >>:




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