शिव संगीत प्रकाश भाग 1 | Shiv Sangeet Prakashan Vol - I
श्रेणी : विज्ञान / Science, संगीत / Music
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.65 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पंडित शिव प्रसाद त्रिपाठी जिनको बनारस में ज्ञानाचार्य जी के नाम से जाना जाता है ; बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत कालेज के प्रथम डीन रहे थे |
उनकी पुत्री शारदा देवी के पुत्र श्री गणेश शंकर मिश्र एक तबला वादक हैं और विश्व के सबसे बड़े तबले का निर्माण उन्होंने शिव प्रसाद जी के घर पर ही किया था | पंडित जी के दामाद स्वर्गीय रमाकांत मिश्र जी एक सितार वादक थे और नातिन स्वर्गीय मंगला तिवारी एक गायिका थीं |
गणेश शंकर मिश्र के पुत्र भी एक गायक हैं और वर्तमान में मुंबई और पुणे में स्टेज शोज के माध्यम से गायिकी का प्रदर्शन करते हैं |
त्रिपाठी जी का परिवार संगीत की कला का धनी है |
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न ( राउ) सश्चारी--गायेद श्रवरोद दोनों के मिश्रण को सचारो चर्ण कहते हैं । रागभेद--मुख्य तीन हैं छोड पाडच श्रौर सम्पूर्ण । इसी को जाति भी फहते हें । ओड़व--जिस राग में पाँच स्वरों का उपयोग होता है उसे श्राडय कहते हैं । पाडच--+जिस राग में छ स्वर का उपयोग होता है उसे पाडव कहते है । सम्पूण--जिस राग में सातों स्वर लगते हैं उसको सम्पूर्ण कहते हें । राग मैं पाँच से कम स्यर सबंमान्य नियम फे विरुद्ध हैं परन्तु कुछ सगीतझ्ञ चार श्रीर तीन स्वर के राग भी यतलाते हैं। ध्लंकार--वणे फी नियमित रचना शथवा विशिष्ट स्वर समुदाय को श्रलकार कहते हैं। प्रचार में इसको गला फददते हैं । स्वर का शीघ्र ज्ञान होना थ राग का चिस्तार समभ में श्राना यही शल- कार का मुख्य उद्देश है। श्रलकार में स्रसख्या के लिये फोई भी नियम नहीं है। चादिसम्बादिप्रकरणु | ।... भ्रततिरागे लखितब्याश्रतुर्विधा स्वरा चुने । घादिसम्चाद्यछुवादिविवादिनश्व नित्पशः ॥ घादीस्वरस्त्वेक प्व संचाद्यपि तथेच च। शेपाणामनुवादित्व दिवादी चर्जितस्वरः ॥
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