अष्टमंगल | Asht Mangal

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Ashtmangal by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वप्तवासवदत्ता पहला हृदय (स्थान--राजगृह के निकट एक तपस्वी का शझ्राश्रम । परिब्नाजक के वेद्य में वत्सराज उदयन के श्रमात्य आरा यौगन्घरायण छद्मवेशिनी राजमहिषी वासवदत्ता के साथ श्राते हैं। एक श्रोर से भट श्राता है । ) भट--हटो हटो राह छोड़ो 1 वासवदत्ता--श्रायं थे कौन गंँवार हैं जो इस पवित्र ब्ाश्रम में भी सगरों के राजमार्ग की तरह लोगों को मार्ग से हटा रहे हैं । यौगन्घरायण--घिक्कार है इनको जो श्रपने वैभव के गर्व से श्रन्थे होकर तपस्वियों के शराश्रम में शांत श्रौर नम्र नहीं रहते । चासवदत्ता--तो क्या ये हमें भी इसी भांति हटावेंगे ? तौगन्घरायशा--श्रज्ञानी जन पूज्य जनों की ऐसी ही श्रवज्ञा करते हैं । वासवदत्ता--श्याेें मु मा्ें के श्रम से इतना कष्ट नहीं हुश्रा जितना इनके इस शआ्राचरण से । यौगन्घरायख--देवी श्राप तो इस प्रकार के सुखीय भोगों को जान- वूभ कर ही त्याग कर चुकी हैं फिर दुःख काहे का ? हम लोगों ने तो जानवूकफ कर ही कठिन ब्रत लिया है । - चासवदत्ता--श्रच्छा अरब मैं कुछ न कहूँगी श्रौर सब बातें चुपचाप सह लिया करूंगी । . -( कंुकी झाता है 1 )




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