भद्रबाहु संहिता | Bhadrabahu Sanhita
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.09 MB
कुल पष्ठ :
482
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नेमिचंद शास्त्री - Nemichand Shastri
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साहु शांति प्रसाद जैन - Sahu Shanti Prasad Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-. श्रस्ताचना तन छोकविजय यन्त्र पश्चाहतरव केवलज्ञानहोरा आयज्ञानतिछक आयसज्ञाव रिपसमुय अघंकाण्ड ज्यो- तिप प्रकाश जातकतिलक केवरज्ञानप्रश्नचूडामणि नक्षत्र चूडामणि चन्द्रोन्मीकन भर मानसागरी आदि सैकड़ों अन्थ उपलब्ध हैं । विपय-विचारकी इृष्टिसे जेनाचार्योंके ज्योतिपकों प्रधानतः दो भागोंमें विभक्त किया है। एक गणित-सिद्धान्त भौर दूसरा फकित-सिंद्धान्त । गणित सिद्धान्त द्वारा अद्दोकी गति स्थिति चक्री-मार्गी मध्यफ़छ मन्दुफछ सूचमफल कुब्या ब्रिज्या वाण चाप व्यास परिधि फल एव केन्द्रफठ भादिका प्रतिपादन किया गया है । भाकाश मण्डछमें चिकीर्णित तारिकाओंका अहोके साथ कब कैसा सम्बन्च होता है इसका ज्ञान भी यणित प्रक्रियासे ही सभव है । जेनाचार्योने भरूगोलिक अन्थोमें ज्योतिरलॉकाधिकार नामक एक परथकू अधिकार देकर ज्योतिषी देवोके रूप रग आकृति श्रमणमाग आदिका विवेचन किया है। यो तो पार्टीगणित वीजगणित रेखागणित न्रिकोणसिति गोछीय रेखागणित चापीय एवं वक्रीय चिकोणसिति श्रतिभागणित श्द्लोन्नति गणित पश्चाज्नतिर्माणगणित जन्मपत्रनिमाण गणित म्रह्युति उदयास्त सम्बन्धी गणितक्रा निरूपण इस विपयके अन्तर्गत किया गया है 1 फलित सिद्धान्तमें तिथि नक्तन्न योग करण वार अहस्वरूप श्रदयोग जातकके जन्मकालीन अहोका फल सुहू्ते समयशुद्धि दिकूशद्धि देशशुद्धि भादि विपयोका परिज्ञान करनेके छिए फुटकर चर्चाओ के अतिरिक्त वषंप्रचोध अहभाव प्रकाश बेडाजातक प्रश्नशतक प्रश्न चतुर्विशतिका ठग्नविचार ज्योतिप- रत्नाकर प्रद्नति अ्न्योकी रचना जेनाचार्योने की है । फछित दिपयके विस्तारमें अषटा्निमित्तज्ञान भी शामिल है भौर प्रधानतः यही निमित्त ज्ञान सदिता विषयके अन्तगंतत आता हे । जेनदष्रिमें सहिता- झ्न्थोमें भा निमित्तके साथ आयुर्वेद और क्रियाकाण्डको भी स्थान दिया है । ऋषिपुत्र साघनन्दी अकलंक भटवोसरि भादिके नाम सहिता अन्थोंके प्रणेताके रूपसें प्रसिद्ध है। प्रश्नशाख्र और सामुद्िक शास्तरका समावेश भी सहिता शाखमे किया है । अष्टाज् निमित्त जिन छक्षणोको देखकर थूत भौर भविष्यत्में घटित हुई और होनेवाली घटनाओका निरूपण किया जाहा है उन्हें निमित्त कहते हैं। न्यायशास्त्रमें दो प्रकारके निसित्त भाने गये हैे--कारक और सूचक । कारक निमित्त वे कहलाते हैं जो किसी वस्तुको सम्पन्न करनेमें सहायक होते हैं जेसे घड़ेके लिए कुम्दार निमित्त दे भौर पटके लिए जुलाहा 1 जुलाहे भौर कुम्हारकी सहायताके चिना घट और पट रूप कार्योका चनना संभव नदी । दूसरे प्रकारके निमित्त सूचक हैं इससे किसी चस्तु या कार्यकी सूचना सिकती है जेसे लिगनछके झुक जानेसे रेठगाड़ीके भानेकी सूचना मिलती है । ज्योतिप शाख््मे सूचक विमित्तोकी विशेष- ताओपर विचार किया गया है तथा सहिता अन्थोंका प्रधान प्रतिपाद्य विपय सूचक निमित्त ही हैं । सहिता शास्त्र सानता हे कि प्रत्येक घटनाके घटित होनेके पहले प्रकृतिमें विक्रार उत्पन्न होता है इन प्राकृतिक विकारोकी पहिचानसे व्यक्ति भावी शुभ-अछुभ घटनाभा।को सरखता पूबंक जान सकता है । अद्द नक्षत्रादिकी गति विधिका भूत भविष्यव् और वतंमान कालीन क्रियाओंके साथ का्यकारण भाव सम्बन्ध स्थापित किया गया हैं । इस अव्यमिचरिंत कार्यकारण भावसे भूत भविष्यतकी घटनाओका अजुमान किया है और इस अजुमानजञानकों अव्यभिचारी माना है। न्यायशाख्र भी मानता हैं कि सुपरीक्तित अव्यमिचारी कायकारण भावसे ज्ञात घटनाएँ विदोप होती हैं । उत्पादक सामग्रीके सदोप होनेसे ही अनुमान सदोप होता है । अनुमान तल झ झन्य की भव्यमिचारिता सुपरीक्षित निर्दोष उत्पादक सामशापर निभेर है। भतः अरह या अन्य म्राकृतिक कारण किसी व्यक्तिका इ्ट अनिष्ट खम्पादन नहीं करते बल्कि इप्ट या अनिष्रूपमें घटित होनेचालो भावी हि घटनाओकी सूचना देते हैं । सक्षेपरें प्रह क्मफठके अभिव्यक्क हैं 1 ज्ञानावरणीय दुशनावरणीय आदि आए कर्म तथा मोदनोयके दशन और चरित्रमोहके मेदोके कारण कर्मोके अ्रघान & भेद जवागममे बताये
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