सुमित्रानंदन पंत का नवचेतना काव्य | Sumitranandan Pant Ka Navchena Kavya

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Book Image : सुमित्रानंदन पंत का नवचेतना काव्य  - Sumitranandan Pant Ka Navchena Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रूण ) पु० स० भ्ररविन्द के विकासवाद का स्वरूप--घक़सोपानमुलक विकास-- विकास के भरूतवादी सिद्धान्त का खण्डन--विकास का चित्‌ सिद्धान्त --वेदान्त के चितु सिद्धान्त से भ्रन्तर--काश्मीरी शैव दशंन के चित्‌ सिद्धान्त से अन्तर--विकास की प्रयोजनीयता--सातत्यवाद का खण्डन--नव्योत्क्रान्ति का भ्राध्यात्मिक स्वरूप--सच्चिदानन्द का स्वरूप--अ्रवरोहण क्रम के सोपान--श्रतिमानस--अधिसानस-- सहजज्ञातमानस--दीप्त मानस--उच्च मानस--मानस-प्राण-- पुदंगल--ग्रारोहण क्रम--वुद्धि की क्षमता तथा परिसीमा-- सहजबोध को विकसित करने का साधन योग --भ्ररविन्द के सर्वाग योग का स्वरूप--नीदे तथा श्ररविन्द के अतिमानव का अन्तर--श्ररविन्द के विकासवाद की मौलिकता--विकास का व्तें- मान चरण । स्वात्म-रूप की प्राप्ति मनुष्य का चरम श्रेय--योग साधन ही नही साध्य भी--दर्शन की अपेक्षा योग की श्रेष्ठता--योग भ्ौर विज्ञान- मय पुरुष--नैतिकता के लिये स्थान--विज्ञानमय समाज--व्यक्ति- दादी और समाजवादी सूल्यो मे समन्वय--निष्कर्ष । अध्याय 4 नवचेतना का काव्य-पक्ष 101. काव्य श्रौर विचार-तत्त्व-- भाव और विचार का स्वरूप एवम सम्वन्ध--काव्य से विचार के बहिष्कार की सभावना ?-- व्यापक युग-बोध के लिए विचार का ग्रहण श्रनिवार्य--काव्य का चरम श्रेय स॒त्य-शिव-सुन्दर--सत्य श्रौर तथ्य का श्रन्तर --सत्य श्रौर सुन्दर का शरद त--सत्य के ग्रहण मे इन्द्रियो तथा बुद्धि की श्रसामथ्यं-- सहजज्ञान द्वारा सत्य का दशन सम्भव--पत जी द्वारा सत्य-सुन्दर का दर्शन--सुन्दर श्रौर शिव का श्रद्द त--युन्दर श्रौर हिव का ऐश्वयें-- नवचेतना काव्य की ऐश्वयं-भूमि--लोक-मगल की प्रतिष्ठा श्रौर कवि-दायित्व--निष्क्ष । भ्रध्याय 5 पुवें लोकायतन काव्य 118 मूल काव्य-चेतना की श्रक्षुण्णता--द्वितीय उत्थान-काल की पु्वे- लोकायतन कृतियाँ --काव्य-रूपको में व्यक्त नवचेतनात्मक प्रवृत्तियाँ -काव्य-चेतना को रूपायित करने वाले कुछ श्रौर प्रभाव--पुर्व- लोकायतन कृतियों मे प्रतिफलित नवचेतना का स्वरूप--श्राथिक




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