वैद्य भाग 1 | Vaidh Vol 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.57 MB
कुल पष्ठ :
769
श्रेणी :
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No Information available about नाथूराम शंकर शर्मा - Nathuram Shankar Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ह मसारसक-पत्र ।
कि
है बढ खब रोलियाँ र्वारथ्य के लिए कितनी दितकर हें, यदद रुप
हो मास्दूम दोता दें उस लमय बचत मनुष्यों के स्वास्थ्य को दी
कसम रखने को व्यवस्था नददीं थी किन्तु : झुओं के स्वास्थ्य पर भी
यहब रखने का नियम था । यथा-“'सदेव गोब्राह्मणबन्दिमागि न
राजमानें न खतुभ्फ्थे च . कर्य्यादथात्सगमपीह गोष्ठे पूर्वा परचिघ
समाशितां गान ॥'' अर्थात् देधता, जाहाण, ओर अर्नि के लामंभि,
राजसाग में चोराहे में, पुझों की याष्ठी में अथवा जिन स्थानों में
गोये क्चिरती हैं, उन स्थानों मे मलत्याग करना निषिश है ।
मुखिका-दुर्गेन्घनाशाक है । श्र इसमें क्ारादि पदार्थों के होने
से यह शरीर के क्लेद और मलादि फो दूर करनी है । पं संक्रम-
जता को निवारण करती हैं. इस लिप यदद दिदु शाठम के मत से शोच
के किये ब्यवह्त होती है । दिदुचमें के साथ स्वास्थ्य का इतना
घनिष्ट सम्बन्ध हैं कि उस स॒त्तिका बे भी शुद्ध होने को विदोष
मभावइबकता है | इस के चिपय में शाखकार कहते हैं कि-जल में से
बिकाली दु, च्यूदे के बिल+ी, अग्राह्य दुखरे के शौच कमे ले बलों
हुई »र स्ाँव को थाँबई की मूसिका नहीं छेनी स्सदिए |
इलके पश्चात दिंदुशास्त्रम प्रातः स्नान थी व्यवस्था रै। प्रातः खान के
नियम भी विधिवद् हे।सुय्योदियल पदलेडी प्रातःस्नानका खमय दे।प्रातः
खान के बिना देवाराथनादि काये सम्पन्न नहीं दोने। इल कारण धार्मिक
दिंडुओं के लिये प्रातःरनान करना पर मसाघइयक है | स्रोत के ज् में,
क्लोत के सामने मुखकरक श्र बिना स्रोत घाले जल मे सूर्यासिमुख
दो नालिपयत जर में खड़े होकर दोनों दाथों लत मुख, नासिक और
कानों के. छिद्रों को बन्द करके डुख+ी लगाकर सलाम * गे | जलाशय
दुख्रे का हो तो स्नान 'ूरने से पहले उसमें से लीन या पॉच सलिका
के पिल््ड निधासकर शिनांर पर रखे अरेर- -' बस्तिछ्ठासिष्ट पढ़ स्व
स्यन पुण्य परस्यथस । शपानि विलय यांति शांति. देहि
सदा बम-' इस मम्त्रका पढ़ें । बह सी स्वास्थ्यविसागका कॉर्ये है ।
प्रत्येक: मल्ुष्य यदि प्रतिदिन सनान करने के समय तीन या पाँच आूलिका
के पिच्ड जअलाधाय (तालाब, नदी | में से निकालकर केक सो
बलसे जदादाय की कींचक ो सफाई सहज में होलकलो हे ।
हारे स्नानके समय मस्तक, वक्षास्थन गादि गक्ों को सुस्लिका
से माजैर करने दे मो जि. दें इशा कारण पदलेदी कहा जा चुका
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