भारतीय इतिहास की मीमांसा अथवा भारतीय राष्ट्र का विकास हास और पुनरुत्था | Bhartiya Itihas Ki Mimansa Or Bhartiya Rashtra Ka Vikas Has Aur Punurtthan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
189.35 MB
कुल पष्ठ :
808
श्रेणी :
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No Information available about जयचन्द्र विद्यालंकार - Jaychandra Vidhyalnkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मिस
श्ैठे रहे या गलत स्थानों पर नियुक्त रहें। ऐसा भी हुश्रा कि ऐसे .
भारतीय विज्ञ से अमरीकी “विज्ञ” ने योजना तैयार करवा के हमारी
सरकार को दे दी, जिसपर सरकार ने श्रपने को निहाल माना, पर वह
अपने देश के वैज्ञानिक को देख न सकी '!
' जब ऐसी दशा है तब हमारी सरकार यह केसे देख पाती कि भारत
की देखी भाषाओं में भी बालशास्त्री जांमेकर के काल ( १८३९ ई० ) से
्ाधुनिक विज्ञानों की मौलिक कृतियाँ पैदा होने लगी थीं श्रौर कि तब से
राष्ट्रसेवकों की एक परम्परा सब तरह की कठिनाइयों के बीच ' भी उस
कार्य को करती चली श्रा रही हैं ? हिन्दी में वैज्ञानिक वांढमय को रचना
का एकमात्र रास्ता उसे यह दिखाई दिया कि अंत्रेजी परिमाषादओों के
अनुवाद कर पहले उनके कोश बनाये जायें, फिर उन कोशों के. सहारे
ब्यंग्रेजी ग्रन्थों के श्रनुवाद कराये जायँ । जिनके समा जवाद”” की बुनियाद
हो विंदेशी सहायता पर हो, जो श्पने राष्ट्र में झपनी महस्वाकाँच्षा ब्प्रौर
मजदूरों की मांसपेशियों की शक्ति के सिवाय शर किसी शक्ति को देख
ही न पातें हों, उन्हें मारत की भाषाओं के विकास का तौर कोई रास्ता
_ कैसे दिखाई दे ?
पर हमारे राष्ट्र की झाँखें सदा मुँदी नहीं रह सकतीं ।. वे खुल्नेंगी
ही । और हमारा अपने राष्ट्र के इतिहास को सुलका : कर जनता की
ब्यपनी भाषा में पेश करने का. उद्देश्य. यही. रहा है कि उसकी
. ्ाँखें खुलें। बह उद्देश्य पूरा होगा तो मेरा श्रम सफल होगा
और सुक्ते किन कठिनाइयों में से लॉघना ब्यौर क्या कष्ट र्पिहना
' चढ़ा इसका कोई दुःख मन में न रहेगा । भारत के इतिहास की यह
मीमांसा झनेक बाघाओं को लॉघ कर झन्त को दुनिया. के सामने झा
रही है। झ्राज की दशाशओं में चाहे मास्त के थोड़े ही लोग इसका मूल्य
'ऑँक पा, मुक्ते विश्वास है कि श्राने वाली पीढ़ियाँ श्रॉकेंगी और .
विदेशों के वे स्पष्टदर्शी विद्वान, श्रॉकेंगे जो. भारतीय इतिहास और
मानब इतिहास में श्रपनी सच्ची रुचि के कारण विदेशी भाषाश्रों की.
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