रैदास जी की बानी | Raidas Ji Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.8 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हरिजन हरिहि और ना जाने, तजे न तन त्यागी ।
कह रेदास सोई जन निर्मल, निसि दिन जो अनुरागी ॥३॥
॥ १६ है
मगती ऐसी सुनहु रे भाई। आाइ भगति तब गई बढ़ाई ॥टेका।
कहा भयो नाचे अरु गाये, कहा भयो तप कीन्हे ।
कहा भयो जे चरन प्खारे, जॉँ लॉँ तत न. चीन्दे ॥१॥
कहा भयो जे मुँड़ मुड़ायो, कहा तीथे ब्रत कीन्हे.।
_ स्वामी दास भगत झरु सेवक, परम तख नहिँ चीन्दे ॥२॥।
कह रेदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावे ।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक' है चुनि खावे ॥३॥।
॥ २४७ मी
अब कछु मरम बिचारा हो हरि ।
आदि अंत औसान राम बिन, कोइ न करे निवारा हो दरि ।टेक।
जब में पंक पंक* अमृत जल, जलहि खुद हो जैसे ।
ऐसे करम भरम जग बॉप्यो, छूटे तुम बिन कैसे हो हरि ॥१॥
जप तप बिधी निषेध नाम करूँ, पाप पुन्न दोउ माया ।
ऐसे माहिं तन मन गति बीमुख जनम जनम डंदकायाद हो हरि ॥र॥
ताइ़न” छेदन त्रायन' खेदन” , बहु बिधि कर ले उपाई ।
लोनखड़ी संजोग बिना जस, कनक कलंक न जाई हो हरी ॥३॥
भन रेदास कठिन कलि के बल, कहा उपाय अब कीजे ।
भव बूड़त भयभीत जगत जन, करि अवलंबन* दोले दो हरी ॥४॥
ही ॥ १८ |]
नरहरि प्रगटसि ना हो प्रगटपि ना हो ।
दीनानाथ दयास नरहरे ॥ टेक ॥।
जनमेरँ तौही ते बिगरान । अद्दो कछु बूकें बहुरि सयान ॥१॥
१ पिपीलिका--चींटी । २ कीचड़ । ३ ठगाया 1 ४ मारना । ४ कार्टना । ६ रक्षा करना |
७ शोक करना, त्याग करना । ८ नौसादर । ६ सदारा !
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