स्वसमरानन्द | Swasamaranand

Swasamaranand  by ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद - Brahmachari Shital Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) स्वसपरानन्द ॥ नलत्थानमें स्नान तो कया एक डुबकी मात्र ठइरानकों न करने देनेवाले यह पांच आत्म मैरी हैं । पांचोंमें प्रघान सिथपात्व सेनापति है, नौर अन्य चार अनन्ता छुबन्धी कोध, मान, माया, कोभ, उस प्रधानके अनुगःमी मित्र हैं । इन पांच अफपरोंके गाधीन कमेवगंणा नामके अनगिनती योद्धा युद्धके सम्मुख हो रहे हैं । और अपने तीक्षण उद्यरूप ब।णों को छगातार उस वीर जात्माकि विज्युद्ध परिणामरूपी छुमटोपर छोड़ रहे हैं पर्ठु वे छुभर त्तत्वविचारकी अत्यंत कठिन ढाउसे उन बाणोंकी चोटोंसे बिलकुछ बच नाते हैं । और यह सुभट भपने. वाणोंको इस 'वतुरताते चलाते हैं कि उन पांचों सेनाके सिपाहियोंकी स्थिति कम होती जाती है, तथा उनका रस भी मंद पढ़ता भाता है | केवरु इन पांच सेनाओंदीका बल क्षीण नहीं हो रहा है, किन्तु सबे विपक्षियोंकी सेनाकी कुटिलता और स्थिरता निमेठ होती नाती है | ,.... एक मध्य अन्तमुहतंतक युव्ध करके इस वीरने अपना बहु तह काम बना लिया है । मच इसके विशुद्ध भावोंकी सेनामें सपूर्व ही नोश, उत्साह जौर साहस है । सत्य दे इत समय इसके योद्ाओोंने अपूचव्दरणलब्थिका बल पाया है | अब ऐसी भपूवेता इसके विशुर् परिणामोंमें है कि इसके नीचेफे सम- यका कोई अन्य आत्मा किसी भी उपायसे इसके परिणामोंकी बराबरी नहीं कर सक्ता है, जब कि ऐसी बात इससे पहले अधो- करणमें सम्भव थी । भव समय ९ भपूर्व २. अनंतगुणी विशु- द्ूताकी दृद्धिको घरनेवाले झुभट अपने वार्णोंको, तलवारोंको




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