कल्याण भाग 11 | Kalyan Volume - 11

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Book Image : कल्याण भाग 11  - Kalyan Volume - 11

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वार-वार नहिं पाइये; मनुष-जनमकी मौज ( ेखक--स्वार्मीजी श्रीरामठुखदाउजी ) मे पराकृतनमद्वन्घ॑ परत्रह्म नयकति । सोन्द्यसारसवंस्च चन्दे नन्दात्मजं मदद ॥ प्रपन्नपारिजाताय.... तोत्नवेन्रेकपाणये । शानमुद्राय छृप्णाय गीतासृतडुहे नमः ॥ सच्चिदानन्दघन पूर्णन्र् परमात्माकों तथा संत- महापुरुषोंकों सादर अभिवादन कर यहाँ कुछ वारतें कडनेकी चेा करता हूँ । इन वातोंमिं जो आपको अच्छी कगें; सुन्दर दीखें; उन वार्तोको तो संत-महात्माओं- की; दाल्रोकी और भगवान्‌की मानना चाहिये तथा जो त्रुटियाँ हों; उन्हें मेरी । चुदियोंकी ओर ध्यान न देकर अच्छी वार्तोकी ओर ध्यान दें; कारण; जो महापुरुपोंके और मगवान्‌के वचन हैं; वे मेरे और आपके लिये परम दढित करनेवाले हैं । उन वचनोंकि अनुसार आचरण करनेसे निश्चित कल्याण होता है । आप आचरण करेंगे तो आपका ढिंत और कल्याण हैं. तथा मैं कहँगा तो मेत कल्याण है । सबसे पहली एक विंद्ोप ध्यान देनेकी वात यह है कि यह मानव-जीवनका समय बहुत ही दुर्लभ हैं और बड़ा भारी कीमती हैं । श्रीमद्धागवतमें बताया है-- दुलभो माजुपों देहो देहिनां क्षणभज्जुरः । ,तत्रापि डुलेम॑मन्ये वेकुण्टप्रियद्र्दानम्‌_ ॥ 'दुलभो मानुपों देह: ”---यह मजुप्यसम्बन्ी देह--- यह॒मानव-दरीर महान दुम है । इसकी प्राप्तिके लिये बड़े-बड़े देवता भी लख्चाते रहते हैं । ऐसा यह मानव-झारीर अत्यन्त ही दुर्म है; क्योंकि इसमें वड़ी-से- बड़ी उनति हो सकती है; परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है, जीवका कल्याण हो सकता है और सदाके लिये उसे परम झआन्तिकी प्राप्ति हो सकती है । ऐसे दुर्लम दारीरकों प्राप्त करके जो इसे व्यर्थ ही खो देता है; उसे फिर बड़ा पश्चात्ताप करना पड़ता है; क्योंकि यह सर्वया अठम्य, अमूल्य अवसर है | अतः इस अवसरके देन एक-एक क्षणकों ऊँचे-से-उँचे काममें वितानेकी चेश्ा करनी चाहिये । समयके समान कोई अमूल्य वस्तु नहीं है| संसारमें लोग पैसोंको वड़ा कीमती समझते हैं; आवश्यक समझते हैं; किंतु विचार कीजिये; जीवनका “समय देनेसे तो पैसे” मिंछ जाते हैं; पर पिंसे देनेसे यह 'समयः नहीं मिलता । हमारे जीवनके छिये हमारे पास हजारों; ढाखों; करोड़ों रुपये रहनेपर भी यदि हमारी आयु नहीं हैं तो हमें मरना पड़ता हैं; किंत॒ वदि हमारी आयु वाकी हो और हमारे पास एक भी कौड़ी न हो; तो भी हम जी सकते हैं । हमारे जीवनका आधार यह प्समय” है, न कि रुपया” । इतना होनेपर भी हमारे भाई लोगोंकी पैंसोमिं तो बड़ी भारी आसक्ति; रुचि और सावधानी है | वे बिना मतख्व एक कौड़ी भी खर्च करना नहीं चाहते; परंतु 'समयकी ओर ध्यान ही नहीं हैं । हमारा समय इतनी देर कहाँ लगा और कहाँ गया; इसमें हमने क्या उपार्जन किया; क्या कमाया; इस ओर हमारा खयाल ही नहीं है | बड़े आश्चर्यकी वात हैं ! ठीक कहा हैं श्रीमतृहरिनि-- “पीत्वा मोहमयी प्रमादमदिरामुन्मत्तभ्ूतं जगत्‌ 1” इस प्रमाद-मदिरासे उन्मत्तता छावी हुई है। नदोमें जैसे मलुप्यको अपनें इारीरका; कपड़ोंका होश नहीं रहता; ऐसे ही इस विपयमें होश नहीं है, चेत नहीं है; इधर ध्यान नहीं है; लय नहीं है । नहीं तो; ऐसे अमूल्य समयका इस प्रकार सत्यानाश क्यों किया जाता १ समय जो निर्र्थक ही चला जाता है; यही उसका सत्यानाद् करना है । ऐसे अमूल्य समयको कीमती-से-कीमती काममें लगानेकी विशेष चेशा करनी चाहिये | क्या करें; विचार करनेसे मादम होता है कि बहुत-से भाई तो ता; चौपड़; खेल-तमाशेमें ही समयको गा देते हैं; वीड़ी; सिगरेट; डक; चड़्स;




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