कल्याण भाग 11 | Kalyan Volume - 11
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.49 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वार-वार नहिं पाइये; मनुष-जनमकी मौज
( ेखक--स्वार्मीजी श्रीरामठुखदाउजी ) मे
पराकृतनमद्वन्घ॑ परत्रह्म नयकति ।
सोन्द्यसारसवंस्च चन्दे नन्दात्मजं मदद ॥
प्रपन्नपारिजाताय.... तोत्नवेन्रेकपाणये ।
शानमुद्राय छृप्णाय गीतासृतडुहे नमः ॥
सच्चिदानन्दघन पूर्णन्र् परमात्माकों तथा संत-
महापुरुषोंकों सादर अभिवादन कर यहाँ कुछ वारतें
कडनेकी चेा करता हूँ । इन वातोंमिं जो आपको
अच्छी कगें; सुन्दर दीखें; उन वार्तोको तो संत-महात्माओं-
की; दाल्रोकी और भगवान्की मानना चाहिये तथा
जो त्रुटियाँ हों; उन्हें मेरी । चुदियोंकी ओर ध्यान न
देकर अच्छी वार्तोकी ओर ध्यान दें; कारण; जो
महापुरुपोंके और मगवान्के वचन हैं; वे मेरे और आपके
लिये परम दढित करनेवाले हैं । उन वचनोंकि अनुसार
आचरण करनेसे निश्चित कल्याण होता है । आप
आचरण करेंगे तो आपका ढिंत और कल्याण हैं. तथा
मैं कहँगा तो मेत कल्याण है ।
सबसे पहली एक विंद्ोप ध्यान देनेकी वात यह है
कि यह मानव-जीवनका समय बहुत ही दुर्लभ हैं और
बड़ा भारी कीमती हैं । श्रीमद्धागवतमें बताया है--
दुलभो माजुपों देहो देहिनां क्षणभज्जुरः ।
,तत्रापि डुलेम॑मन्ये वेकुण्टप्रियद्र्दानम्_ ॥
'दुलभो मानुपों देह: ”---यह मजुप्यसम्बन्ी देह---
यह॒मानव-दरीर महान दुम है । इसकी प्राप्तिके
लिये बड़े-बड़े देवता भी लख्चाते रहते हैं । ऐसा यह
मानव-झारीर अत्यन्त ही दुर्म है; क्योंकि इसमें वड़ी-से-
बड़ी उनति हो सकती है; परमात्माकी प्राप्ति हो सकती
है, जीवका कल्याण हो सकता है और सदाके लिये
उसे परम झआन्तिकी प्राप्ति हो सकती है । ऐसे दुर्लम
दारीरकों प्राप्त करके जो इसे व्यर्थ ही खो देता है; उसे
फिर बड़ा पश्चात्ताप करना पड़ता है; क्योंकि यह
सर्वया अठम्य, अमूल्य अवसर है | अतः इस अवसरके
देन
एक-एक क्षणकों ऊँचे-से-उँचे काममें वितानेकी चेश्ा
करनी चाहिये । समयके समान कोई अमूल्य वस्तु नहीं
है| संसारमें लोग पैसोंको वड़ा कीमती समझते हैं; आवश्यक
समझते हैं; किंतु विचार कीजिये; जीवनका “समय देनेसे
तो पैसे” मिंछ जाते हैं; पर पिंसे देनेसे यह 'समयः
नहीं मिलता । हमारे जीवनके छिये हमारे पास हजारों;
ढाखों; करोड़ों रुपये रहनेपर भी यदि हमारी आयु नहीं
हैं तो हमें मरना पड़ता हैं; किंत॒ वदि हमारी आयु
वाकी हो और हमारे पास एक भी कौड़ी न हो; तो
भी हम जी सकते हैं । हमारे जीवनका आधार यह
प्समय” है, न कि रुपया” । इतना होनेपर भी हमारे
भाई लोगोंकी पैंसोमिं तो बड़ी भारी आसक्ति; रुचि और
सावधानी है | वे बिना मतख्व एक कौड़ी भी खर्च
करना नहीं चाहते; परंतु 'समयकी ओर ध्यान ही
नहीं हैं । हमारा समय इतनी देर कहाँ लगा और कहाँ
गया; इसमें हमने क्या उपार्जन किया; क्या कमाया;
इस ओर हमारा खयाल ही नहीं है | बड़े आश्चर्यकी
वात हैं ! ठीक कहा हैं श्रीमतृहरिनि--
“पीत्वा मोहमयी प्रमादमदिरामुन्मत्तभ्ूतं जगत् 1”
इस प्रमाद-मदिरासे उन्मत्तता छावी हुई है।
नदोमें जैसे मलुप्यको अपनें इारीरका; कपड़ोंका होश
नहीं रहता; ऐसे ही इस विपयमें होश नहीं है, चेत
नहीं है; इधर ध्यान नहीं है; लय नहीं है । नहीं
तो; ऐसे अमूल्य समयका इस प्रकार सत्यानाश क्यों
किया जाता १ समय जो निर्र्थक ही चला जाता है;
यही उसका सत्यानाद् करना है । ऐसे अमूल्य समयको
कीमती-से-कीमती काममें लगानेकी विशेष चेशा करनी
चाहिये | क्या करें; विचार करनेसे मादम होता है कि
बहुत-से भाई तो ता; चौपड़; खेल-तमाशेमें ही
समयको गा देते हैं; वीड़ी; सिगरेट; डक; चड़्स;
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