सन्त संग्रह भाग 1 | Sant Sangrah Volume-1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.75 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्त संग्रद भाग पहिलां हि श्पू
लिपि एॉीीीीटटटटीीी एड शीट
पतिब्रता को सुख चना , जाके पति है एक ।
मन मेली बिमचारिनी , जाके खसस श्मलेक २४
पतित्रता मेली भली , वाली कः्चल छरूप ।
पद्तिब्रता के रूप पर , वारू कोटि सरूप ४३॥
पत्ब्रता पति को शरज़े , शोर न न. सुहाय ।
संह बचा जो लंघना , तो भी घास न खाप 0श
नेनीं अंतर भाव तू , सेन क्ाँप तोहि ठ ।
ना में देखू श्र को , ना. तोहि देखन दूं पेश
कबीर सीप ससझव्यी , रद पिधास पियास ।
घ्पौर बेद को सा गहे , स्लाँत बूंद की झास ॥
पांपहा का पन देखे कर, धीरज रहे ल रच ।
मरते दस जल में पड़ा , तऊ न .बोरी चंच 0७)
मे सेवक समरत्थ का , कयह न होथ परकाज ।
पत्ता नाँगी रहे , तो वाही पति को लाज ॥८्ा
मं सेदक समरत्थ वसा , कोई परयला साग।
सोती जागी सुन्द्री , सा दिया. सुहाग ॥९॥
पतिब्रंता के एक तू , सुन लिन छौर ले कोय ।
श्वाठ पहर निरखत रहे ., सोइ सुहारान होय ॥१०॥
इकचितहोयनापियसिल, पत्िब्रत ना श्ावे ।
चंचल मन चह दिस फिरे, पिथ कहो केसे पावे ॥११॥
सुन्दर तो सोइ' भजे , तजे छान को' ध्पास ।
ताहि न कबहूं परिहरे , पलक न छोड़े पास ॥९९॥
चढ़ी ध्पयखाड़े सन्द्री , माँड़ा पिउ साँ खेल ।
दीपक जोधा ज्ञान का , काम जरे ज्योँ तेल ॥९३॥
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