अध्यापक पूर्ण सिंह | Adhyaapak Puurnd-a Sinh

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Adhyaapak Puurnd-a Sinh by रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पूर्ण सिंह को अपनी माता का भरपूर प्यार मिला। पूर्ण सिंह वचपन से ही अत्यन्त भावुक और संवेदनशील थे । प्रकृति के सौन्दर्य को देखकर वे विभोर होकर तन्मय हो जाते थे । वही तन्मयता गुरुवाणी का पाठ करती हुई अपनी माता में देखते थे। नैसर्गिक सौन्दर्य और आध्यात्मिक पवित्रता दोनों ने पूर्ण सिंह के बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला । यह प्रभाव आगे चलकर उदात्त सौन्दर्य-चेतना के रूप में उनकी रचनाओं में व्यक्त हुआ। पूर्ण सिंह की आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही सम्पन्न हुई। भाई बेला सिंह ने गुरुद्वारे में उन्हें गुरुमुखी पढ़ाया और एक मौलवी साहब ने मकतब में उर्दू सिखाया । 1895 में उन्होंने म्यूनिसिपिल वोर्ड हाईस्कूल हरिपुर से मिडिल परीक्षा पास की। मिडिल्न में उनका एक विषय फ़ारसी भी था। 1897 में उन्होंने रावलपिण्डी के मिशन स्कूल से पंजाब यूनिवर्सिटी की मैट्रीकुलेशन परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद उन्होंने अपना नाम डी. ए. वी. कालेज लाहौर में लिखाया | 18909 में उन्होंने इंगलिश मैथमेटिक्स संस्कृत और केमिस्ट्री के साथ एफ. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की । आगे पढ़ने के लिए उन्होंने इसी कालेज में बी. ए. कक्षा में नाम लिखाया। लाहौर में अहलूवालिया खालसा विरादरी नामक सिंखों का एक संगठन था । बिरादरी मेधावी छात्रों को विदेशों में उच्चतर अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करती थी । विरादरी के सदस्य छात्र पूर्ण सिंह की प्रतिभा और वक्‍्तृत्व-कला से विशेष प्रभावित थे। अभी आपने बी. ए. में प्रवेश लिया ही था कि बिरादरी ने जापान जाकर रसायनशास्त्र के उच्चतर अध्ययन के लिए आपको छात्रवृत्ति प्रदान कर दी। सन्‌ 1900 में आप जापान गये और वहाँ टोकियो की इम्पीरियल यूनिवर्सिटी में आपको औपध रसायन (शि8ाएए80 681 (06एए51%) के विशेष छात्र के रूप में प्रवेश मिल गया। जापान में रसायन विज्ञान के अध्ययन के साथ ही आपने वहाँ कला-संस्कृति और अध्यात्म में भी गहरी रुचि दिखायी । जापान की प्राकृतिक सुधमा देखकर आपको अपने गाँव की याद आ जाती थी। जापान के लोगों की सरलता निश्छलता स्नेहशीलता और कर्ममय जीवन के प्रति समर्पण ने आपको मुग्ध कर लिया । टोकियो में इण्डो जापानी क्लव नाम की एक संस्था थी । इसमें भारतीय और जापानी छात्र रहते थे। पूर्ण सिंह इस क्लब के मंत्री चुन लिये गये । उन्होंने जापानी भाषा पर अच्छा अधिकार कर लिया और जर्मन भी सीखी । प्रसिद्ध जापानी भिक्षु विद्वान ओकाकुरा (01८8£णा8) से आप इतने प्रभावित हुए कि बौद्ध भिक्षु हो गये। जीवन-परिचय / 15




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