आचार्य रामचन्द्र शुक्ल | Aacharya Ramchandra Shukl

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aacharya Ramchandra Shukl by रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

Add Infomation AboutRamchandra Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
:२: जीवन-संघर्ष : व्यक्तित्व और रचना-दृष्टि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन्‌ १८८४ ई० ( वि° सं° १९४१ ) में आश्चिन शुक् पूणिमा को बस्ती जिले के 'अगौना” नामक ग्राम में हुआ था। सन्‌ १८९८ में (४ वर्ष की अवस्था में उन्होंने मिर्जापुर के एंग्लो संस्कृत जुबली स्कूल से उदृ के साथ अंग्रेजी लेकर मिडिल पास किया। सन्‌ १९०१ में आपने मिर्जापुर के ही लन्‍्दन मिशन स्कूल से स्कूल फाइनल परीक्षा पास की । इसके बाद इलाहाबाद की कायस्थ पाठशाला में नाम लिखाया, लेकिन पारिवारिक कारणों से बीच में ही पढ़ाई छोड़ देनी पढ़ी । सन्‌ १९०२ में प्लीडरशिप की परीक्षा दी, किन्तु अच्छी तैयारी न होने के कारण उतीर्ण नहीं हुए । अध्ययन की प्रवृत्ति आरम्भ से ही थी। लन्‍्दन मिशन स्कूल के प्रिसिपल एफ* एफ० लॉगमैन आपको अंग्रेजी पढ़ने के लिए बराबर प्रोत्साहित करते रहते थे । १८९५ से १९०३ ई० तक शुक्कजी अंग्रेजी के व्यापक एवं गम्भीर अध्येता श्री रामगरीब चौबे के सम्पर्क में रहे । चोबेजी की अध्ययनशीलता उन्माद की सीमा तक पहुँची हुई थी । वे शुक्ल॒जी के लिए चुनी हुई पुस्तकें जुटा दिया करते थे। “चौबेजी के सम्पर्क से शुक्कजी को मिडिल पास करते-करते अंग्रेजी का उतना ज्ञान हो गया था जितना उस समय एफ० ए० कै विद्याथियों को भी बहुत कम होता था ।?* १८९८-९९ ई० में आपने एडिसन के “एसे ऑन इमेजिनेशन” का अनुवाद “कल्पना का आनन्दः शीर्षक से कर डाला था! १९.३ ६० तक आपने अपने हिन्दी-साहित्य के ज्ञान से बदरीनारायणं चौधरी प्रेमधन” को इतना प्रभावित कर लिया था कि उन्होने “आनन्द कादम्बिनी के सम्पादनका भार इन्हे सौप दिया था । स्वयं शुङकजी १६ वर्षं की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते अपने को लेखक मानने लगे थे। 'प्रेमथन की छाया-स्मृति” में वे ত্র ই ? वर्ष की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते तो समवयस्क हिन्दी-प्रेमियों की एक खासी मण्डली मुझे मिल गयी, जिनमें श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल, बा० भगवानदासजी हाल्ना, पं० बदरीनाथ गौड, पं० उमाशंकर द्विवेदी मुख्य थे । हिन्दी के नये-पुराने लेखकों की चर्चा बराबर इस मण्डली में रहा करती थी। मैं भी अबं अपने को एक लेखक मानने लगा था ।**२ १. रामचन्द्र शुक्न ( जीवन और कतुंत्व ), पृ० ९६। २. चिन्तामणि-३, पृ० २२९।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now