मानव धर्म | Maanav Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.22 MB
कुल पष्ठ :
97
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द प्रानच-घमे अपना भी मद्दान्ू अनिष्ट होता है दिन-रात हृदय जठा करता है | इतनेने भी इस अमड्लढकी समाप्ति नहीं हो जाती । दोनों ओरसे देष और प्रतिहिंसाकी पुष्टि होते-होते परस्पर बिविघ प्रकारसे संबर्षण होने लगता है और उससे एक ऐसा प्रबल दावानढ जठ उठता है जो बड़ी-बड़ी जातियों और राष्ट्रॉंकी भस्म कर डाडता है | जगतके बड़े-बड़े युद्ध आरम्भमें दो-चार मचुष्योंके परस्पर मनो- मालिन्यके आधारपर ही हुए हैं। यदि मनुष्य अपने ही-जैसे दूसरे मनुप्य- की किसी भूखको दब न समझकर उसपर क्षमा कर दे तो उन दोनकि साथ-ही-साथ सारा समाज भी बड़े अनथसे बच सकता है | हम जिस घटनाको अपनी बुराई समझते हैं वह वास्तवमें हमारी बुराई ही है ऐसा कोई निश्चय नहीं है । बहुत बार मनुष्य किसी घटनासे अपना अनिषट समझता है पर वहीं घटना परिणाममें उसके छुखका कारण सिद्ध होती है । हम भूठसे मनके प्रतिकूठ प्रत्येक घटनामें ही प्राय अनिष्ट देखते हैं । यह निश्चित . बात है. कि सभी घटनाएँ या. दूसरोंके द्वारा किये हुए सभी कार्य हमारे मनके अनुकूल नहीं हो सकते सबके मनकी भावना और . प्रदत्ति तथा सबकी परिस्थिति समान नहीं हो सकती । कभी-कभी तो एक-दूसरेकी सर्वधा विपरीत परिस्थिति रहती है । हमें किसी दूसरेके एक कार्यमें अपना अनिट दीख पड़ता है या. कहीं-कहीं- पर उससे हमारे स्वार्थ कुछ बाधा पहुँची दिखायी देती है परन्तु इससे यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि उस मनुष्यने _ बास्तवमें जान-बूझकर हमारे स्त्राथमें हानि पहुँचानेके लिये वह. काम किया है । व्यापारी-जगत्में बहुत बार हमें ऐसा अनुभव होता है । दो व्यापारियोंके पास एक तरंइका माल है एक
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