मानव धर्म | Maanav Dharm

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Maanav Dharm by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द प्रानच-घमे अपना भी मद्दान्‌ू अनिष्ट होता है दिन-रात हृदय जठा करता है | इतनेने भी इस अमड्लढकी समाप्ति नहीं हो जाती । दोनों ओरसे देष और प्रतिहिंसाकी पुष्टि होते-होते परस्पर बिविघ प्रकारसे संबर्षण होने लगता है और उससे एक ऐसा प्रबल दावानढ जठ उठता है जो बड़ी-बड़ी जातियों और राष्ट्रॉंकी भस्म कर डाडता है | जगतके बड़े-बड़े युद्ध आरम्भमें दो-चार मचुष्योंके परस्पर मनो- मालिन्यके आधारपर ही हुए हैं। यदि मनुष्य अपने ही-जैसे दूसरे मनुप्य- की किसी भूखको दब न समझकर उसपर क्षमा कर दे तो उन दोनकि साथ-ही-साथ सारा समाज भी बड़े अनथसे बच सकता है | हम जिस घटनाको अपनी बुराई समझते हैं वह वास्तवमें हमारी बुराई ही है ऐसा कोई निश्चय नहीं है । बहुत बार मनुष्य किसी घटनासे अपना अनिषट समझता है पर वहीं घटना परिणाममें उसके छुखका कारण सिद्ध होती है । हम भूठसे मनके प्रतिकूठ प्रत्येक घटनामें ही प्राय अनिष्ट देखते हैं । यह निश्चित . बात है. कि सभी घटनाएँ या. दूसरोंके द्वारा किये हुए सभी कार्य हमारे मनके अनुकूल नहीं हो सकते सबके मनकी भावना और . प्रदत्ति तथा सबकी परिस्थिति समान नहीं हो सकती । कभी-कभी तो एक-दूसरेकी सर्वधा विपरीत परिस्थिति रहती है । हमें किसी दूसरेके एक कार्यमें अपना अनिट दीख पड़ता है या. कहीं-कहीं- पर उससे हमारे स्वार्थ कुछ बाधा पहुँची दिखायी देती है परन्तु इससे यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि उस मनुष्यने _ बास्तवमें जान-बूझकर हमारे स्त्राथमें हानि पहुँचानेके लिये वह. काम किया है । व्यापारी-जगत्‌में बहुत बार हमें ऐसा अनुभव होता है । दो व्यापारियोंके पास एक तरंइका माल है एक




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