श्रीहरि भजनामृत भाग २ | Shriiharibhajanaamrit Bhaag 2

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Shriiharibhajanaamrit Bhaag 2 by जगन्नाथ रघुनाथ - Jagnnath Raghunath

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श्रीशंकर प्रसन्न. श्रीहरि-भजनाम्रत. (07% -.-*- €€*-<.. भाग २ रा. पद १. (राग बिळावल. ) आदि सनातन हरि अविनाशी । सदा निरंतर घट घट बासी | पूरण ब्रम्ह पुराण बखाने । चतुरानन शिब अंत न जाने ॥ महिमा अगम निगम जिहि गावे | सो यशुदा लिये गोद खिलावै ॥ एक निरंतर ध्यावे ज्ञानी । पुरुष पुरातन हे निर्वांनी ॥ शुक शारदको नाम अघारा । नारद शेष न पारवे पारा ॥ जप तप संयम ध्यान न आवे | सोइ नंदके औंगन धावे ॥ लोचन श्रबण न रसन। नाशा । बिन पद पाणि करे परकाशा ॥ अरुण असित सित वरण नघारे । मुनि मनसा कहा विचारे || विश्वेमर निजनाम कहावे । घर घर गोरस जाय चुरावे ॥ जरा मरण ते रहित अमाया । मात पिता मुत बंधु न जाया ॥ आदि अनंत रहे जलसाई । परमानंद सदा सुखदाई | ज्ञानरूप हिरदैर्मे बोठे । सो बछरनके पाळे डोळे |॥ जल




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