विधि विधान | 1010 Vidhi Vidhan 1937

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1010 Vidhi Vidhan  1937 by अमजई अली खान - Amjai Ali Khan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(' रे ) की मर मु्ति के समान खड़ा था, वह कुसी' झब भी वहीं थी | सम्पु अन्यमनस्क दोका उस कुत्ती' को अपने हृदय से कगा कर अनीता उस वेदुनामय स्पति को अनुमव करने ठगी । उस दिन की प्रत्येझ़ बात, प्रत्येक घटना, विषाक्त कांटे के समान उसके वक्ष में चुमने ठगी, तो भी केवक इस स्पृति से ही उसे कितना श्राचन्दू मिला ] इन्द्रनाथ को स्छृति- मात्र ही जो धानन्द्मय थी |” इसके बाद इन्द्रनाथ वहां श्रा पहुंचता है और झनीता को उस कुसी' से छिपटा हुआ पाता है। यह कितना वेद्नामय है यह' सहज हो समका जा सकता दे । इसी प्रकार के भनेकानेक उदाहरण मिलेंगे । लेखक ऐसी परिस्थि- तियों की सष्टि करने में बहुत सिद्धहस्त हैं । उनकी उपन्पास-ऊछा की यह भी एक विशेषता है | इन परिस्थितियों में करण रस का ऐसा समा- वेश रहता है कि पाठक का हृदय वेदना तथा सहाजुभूति से पथ हो जाता है, और वह वेदुना नयनाश्ु बन कर निकछने ठपती है नरेशबाज्ु की शैठी भी एक श्राछोच्य वस्तु है । उनकी शैछी में एक- ऐसा माघुय्ये रहता है कि पाठक को पुस्तक का कोई भश अमनोरसर नहीं माजूम होता है । यह घपन्यास भी उसी श छी का परिचय देता है । इसके अतिरिक्त सनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने से भी उन के सब्र उपन्यास श्र विशेषतः यह उपन्यास मनोविज्ञान श्रोर दुशन के ०च्च तत्वों का उदाहरण प्रदूश न करता है भर यही कछा का एक झावश्यक भंग है | अधच लेखक इसे हुस प्रशार प्रदेश न करते हैं कि उपन्पास भधिकतर मनोरन्लुऊु धन जाता हे । उनके इस उपन्यास का सुदष्म विश्ठेषण करने पर देखा जाता हे कि लेखक ने मानव जीवन शर मानव मन के जटिक तत्वों की विशद्‌ व्याख्या की है । नरेशचन्द्रतथा रनके उपन्यास घोर विशेषत: इस उपन्याप्त के सम्बन्ध में मिन्न मिन्न समाठोचक श्रोर पत्र-पत्रिकाओं के जो मतामत हैं उनका सारांश मी मैं विश्व कवि रवीन्द् के निम्वछिखित शब्दों में देता हूँ --




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