हिंदी के कवि और काव्य भाग २ | 1118 Hindi Ke Kavi Or Kavya Vol-2 1939
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.4 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं गणेशप्रसाद द्विवेदी - Pt. Ganeshprasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
इतना पता अवश्य चल्न जाता है कि संतसादित्य घर संतों के आध्यात्मिक विचार
इन से प्रभावित अवश्य हुए । संतसाहित्य में नाथ सप्रदायवाले मह्दाकाव्यों द्वारा
प्रचारित ज्ञानमार्ग के साथ साथ जो भक्ति का पूर्व स्रोत मिला हुआ दिखता है
उस का श्रेय स्वामी रामानंद तथा उन के कुछ सत शिष्यो.को ही देना पड़ेगा ।
फिर इस के सिंवा छोटे वड़े, ऊँच-नीच सब को समान रूप से अपनाना भी स्वामी
रामानंद के समय से ही शुरू हुआ जैसा कि ऊपर कह्दा जा चुका है। इस सिल-
सिले में स्वामी न्नी के शिष्यो मे सदना और रैदास के नाम विशेष रूप से उल्लेख-
योग्य हैं। सदना जाति के कसाई थे, और रेदास चमार थे । कसाई होते हुए
भी ये जीवहदत्या नहीं करतें थे । केवल कटा हुआ सांस वेँचा करते थे । इन की
भक्ति पूर्व थी । इतना विनय भाव कम दी देखने को मिल्नतां है, जैसे--
एक बूँद जल. कारने , चातक दुख पावे।
प्रान गये. सागर मिलै , पुनि काम न आ्ावै |
प्रान जो थाके यिर नाहीं , कैसे विरमावो ।
बूड़ि मुये नौका मिले , कह काहि. चढ़ावो ||
मैं नाहीं कुछ हों नाहीं , कट आहि न मोरा |
श्रौसर लज्जा राखि लेहु , रदना जन तोरा ||
अंदभाव का पूणणं रूप से तिरोभाव, निपट दीनता, अपने आझाप को
पूर्णत! “उस के ' हांथो सौप देना; यदद सब पराभक्ति के लक्षण हैं। ऊपर वाले
पद में दस यदद सभी बाते पाते हैं । रैदास की रचना मे भी दम यद्दी भाव पाते हैं ।
भक्ति की यह भावना आगे चलन कर प्रायः सभी संतों ने झपनाइई और इस का
उपदेश दिया । ये दोनों मद्दात्मा कबीर के सम-सामयिक थे ।
रामानंद के एक शिष्य पीपा जी का भी प्राथमिक संतों में एक विशेष
स्थान है । ये एक राजा थे और कबोर से छुछ पदले के थे । इन का उल्लेख यहां
पर इस लिये करना हम झावश्यक सममते हैं कि सब से पहले यथासंभव
इन्दो ने ही स्पष्ट शब्दों मे साकार उपासना को आडंवर और पूजा के लिये देवता,
मंदिर तथा अन्य असंख्य वाइय-उपचारों को व्यथ बताया । इन का पद देखिये--
काया देवल काया देवल ,
काया... जंगम जाती |
काया. धूप. दीप नैवेदा ,
काया... पूजों पाती ॥
काया वह खड खोजने ,
नव निद्धी पाई ।
ना कट्ठ आाइवो ना कट जाइवो ,
राम की ' दुद्दाई ॥।
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