हिंदी दासबोध | Hindi Daasbodh

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Hindi Daasbodh by रामदासजी - Ramdasji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ भजन करते भर सुनते हुए माघ बदी नवमीकों वे यह असार संसार छोड़कर परलोक सिधारे । कहते हैं कि जिस समय समर्थका स्वर्गारोइश दोने लगा उस समय उनके सब शिष्य रोने लगे । समर्थने कद्दा कि क्या इतने दिनों तक तुम लोगोंने मेरे साथ रदकर रोना ही सीखा है ? लोगोंने कद्दा कि यह सगुण मूर्ति इम लोगों के सामनेसे चली जा रददी दै । अब दम लोग किसके साथ भजन भर बात-चवीत करेंगे समर्थने उत्तर दिया था कि मेरे बाद जो लोग सुभसे बात-चीत करना चाहें वे मेरा दासबोध नामक ग्रन्थ पढ़ें । अज्भुत करत्य प्रत्येक साधु मद्दात्मा ओर महापुरुषके सम्बन्ध्म उनके अनुयायियोमें अनेक प्रकारके अद्भुत कृत्योंकी प्रसिद्धि होती है । इनमेंसे कुछ तो वास्तविक दोते हैं और कुछ उनके भक्तों द्वारा पीछेसे गढ़ लिए जाते हैं । श्री समर्थ भी बहुत बड़े महात्मा थे अतः उनके बहुतसे कृत्योंका ऐसा होना अनिवार्य है जो लोगोंको बहुत अद्भुत और आश्वयंजनक जान पढ़ें । जनतामें उनके इस प्रकारके जो अद्भुत कृत्य या करामार्तें प्रसिद्ध हैं वे बहुत अधिक हैं. ओर उनका पूरा वर्णन करनेके लिए एक स्वतन्त्र पुस्तक चाहिए. । अतः यद्दाँं हम उनमेंसे एक दो कृत्य पाठकों के मनोविनोदके लिए दे देते हैं सज्जनगट्का किला बनवानेके समय एक दिन महाराज शिवाजीके मनमें इस बातका कुछ अभिमान-सा हुआ कि मेरे द्वारा नित्य हजारों आदरमियोंका पालन होता है । उसी अवसर पर श्री समर्थ भी वहाँ जा पहुँचे । शिवाजीसे बातें करते करते श्री समर्थने पत्थरके एक ठुकड़ेकी ओर सक्केत करके एक बेलदारसे उसे तोड़- नेके लिए कद्दा । जब घह्द पत्थर तोड़ा गया तब उसके अन्दरसे थोड़ा-सा पानी और एक जीता हुआ मेंढक निकला । श्री समर्थने वद्द मेंटक दिवाजीकों दिखला - कर बहुत शक्तिशाली हो । तुम्हारे सिवा जीवोंका पालन और कौन कर सकता है शिवाजी अपनी मूल समभक गये और उन्होंने मन ही मन बहुत खज्जित दोकर श्रपने मिथ्या अभिमानके लिए श्री समर्थसे क्षमा माँगी । सन्‌ १६७८ में एक बार श्री समथंके यहाँ एक साथ ही सैकड़ों भादमी थमा पहुँचे । उस समय उनके मठमें चावल बहुत ही कम प्रायः नह्दींके समान था । जब




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