मारवाड़ रा परगना ऋ विगत भाग - १ | Marvad Ra Pargana Ri Vigat Part-i

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Marvad Ra Pargana Ri Vigat Part-i by मुहंता नैरासी - Muhanta Nairasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ 3 को नियुविति तथा उसके अ्धिकार--राव मालदे तक साधघारणतया यह परम्परा मान्य थी कि शासक की मृत्यु के पदचात उसका जेष्ठ पुत्र राजगद्दी का श्रघिकारी होता था । परन्तु इस परम्परा का बराबर निर्वाह दो कारणों से नहीं हो पाया--कई बार राजा श्रपनी प्रिय रानी के पुत्र को गद्दी का श्रधिकारी घोषित कर देता था जेसा राव चूंडा ने किया । जेष्ठ पुत्र में योग्यता की कमा होने पर भी गद्दी के लिये उसे श्रचुपयुक्त समझ कर सामंत गण उसके श्रन्य भाई को गद्दी का भधिकारी बना देते थे । * तभी से यह कहावत प्रसिद्ध हुई-- 'रिड़मलां थापिया जिके राजा' यह सब कुछ होते हुए भी तब तक राज्य-गद्दी के झधिकार के निरचय के सम्बन्ध में किसी बाहरी दव्ति का वैधानिक हस्तक्षेप नहों था । अकबर की श्रोर से सर्वप्रथम सुगल साम्राज्य का हस्तक्षेप प्रारंभ हुमा भ्रौर मारवाड़ का विधिवत शासक वही साना जाने लगा जिसे सम्राट की श्रोर से टीका दिया ज्ञाता था । साथ ही उसे मनसब भी दिया जाता था, जिसके बदले में उसे झपनी सेवाएँ साम्राज्य को देनी होती थीं । मोटा राजा उदयरतिह को स्वेप्रथम अ्रकबर ने झपनी श्रोर से सारवाड़ का राज्याधिकार दिया था भोर तब से ऐसी प्रथा चल गई कि सम्राट शासक के पुत्रों मे से किसी को भी राज्य-गद्दी का श्रघिकारी बना सकता था । परन्तु यह सब उस समय की परिस्थितियों तथा शासक व सम्राट के श्रापसी सम्बन्धों पर ही बहुत कुछ निर्भर करता था । दाहजहां ने राजा गजसिह की इच्छानुसार उसके छोटे लड़के जसवंतसिह को गद्दी का अधिकारी बनाया था क्योकि गजसिह की सेवाशों से वह बहुत प्रसन्न था श्रौर जेष्ठ पुत्र प्रमरसिह को पहले से ही नागोर की जागीर प्रदान कर के भ्रलग कर दिया था । गद्दी पर बठने के पदचात नये छासक के नाम का 'प्रमल दस्तुर” उसके राज्य में होता था, जिससे उस शासक के नाम की विधिवत कार्यवाही राज्य में प्रारंभ होती थी । शासक की दोहरी जिम्मेवारी होती थी । एक शभ्रोर उसे मुगल साम्राज्य की सेवाओं का पूरा खयाल रखना पड़ता था तथा दूसरी श्रोर श्रपने राज्य का प्रबंध करना पड़ता था । अकबर के शासन-काल से लेकर श्रौरंगजेब के समय तक प्राय! यहां के शासक मुगल साम्राज्य की सेवात्रों में ही श्रघिक व्यस्त रहे है श्र स्था- नीय शासन का कार्य भ्रपने प्रधान व दीवान भ्रादि के माध्यम से चलाते रहे हैं। न कम ये 2. १० पृष्ठ ९६ । २. सुदणोत नैणुसी की ख्यात (ना. प्र, स० काली ) पृ १४४ ।॥




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