कुण्डलिया रामायण | Kundaliya Ramayan

Book Image : कुण्डलिया रामायण  - Kundaliya Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४. यदि तुलसीदासजी के आविभांव काल के पहले कुएडलिया छन्द बन चुका होता त्रथा उसका म्राह्म रूप निर्धारित हो चुका होता तो काई कारण न था कि वे आठ प्रकार की कुगडलिया लिखते । पर बात दूसरी ही थी उन्हें तो एक नई पद्धति का निमाण करना था। फिर वे उसके विषय में हर प्रकार की छान-बीन क्यों न करते । किसी कुएडलिया में उसके आदि का वाक्यांश अन्त में ज्यों का त्यों रख दिया गया है तो कहीं आदि का एक शब्द अन्त में दुद्दरा दिया गया है पुनः कहीं आदि की पंक्ति का एक शब्द अन्तिम पंक्ति में कहीं भी उदुघ्नृत किया मिलता है। कहीं कहीं ऐसा भी नहीं किया गया है। ऐसा अनुमान होता है कि यह सब गोस्रामी जी ने इसी निणंय तक पहुँचने के लिए किया कि कुगडलिया छन्द के सवश्रेष्ठ और अधिक प्रियड्र रूप का पता लग जाय । उन्हें अपने काये में सफलता मिली इसका स्पष्ट प्रमाण यही है कि बालकाणड का पूर्वांध समाप्त होते- होते उन्होंने कुएडलिया का एक रूप पहला प्रकार ही चुन लिया और उसी में सारी कुगडलिया रामायण लिख डाली | रामचरितमानस में भी हमें ऐसे कई अंश मिलते हैं जिनके पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि तुलसीदास जी में कुएडलिया छन्द लिखने का प्रवृत्ति उस समय भी विद्यमान थी जब वे रामचरितमानस का निमोण कर रहे थे। यहाँ पर हम एक ऐसा ही उदाहरण देकर अपने कथन की पुष्टि करेंगे चौपाइ-- मुदित देवगन रामहिं देखी तप समाज दुहेँ हरष विसेषी । छन्द-अति हरष राज समाजु दिसि दुन्दुभी बाजहिं घनी | बरषहिं सुमन सुर हरघि कहिं जय जयति जय रघुकुलमनी ।। एहिं भाँति जानि. बरात आंवत बाजने बहु बाजहीं । रानी सुझासिनि बोलि परिछन हेतु मंगल साजहीं | दोहा--सजि आरती अनेक बिधि मज्जल सकल संवारि मुदित परिछन करन गजगामिनि वर नारि | .. इस उदाहरण में चौपाई के अन्तिम चरण का हर शब्द छन्द के आदि चरण में दुद्दरा दिया गया है और छन्द का अन्तिम शब्द साजहीं दोहे के आदि में सजि के रूप में दुदरा दिया गया है। गोस्वामीजी की यही प्रवृत्ति हमें कुरडलिया-रामायण में भी .. स्पष्ट मिलती है क्योंकि जब वे किसी कुणडलिया के अन्तगेत एक छन्द से दूसरे छन्द में उतरे हैं तो प्रथम छन्द का अस्तिम शब्द दूसरे छन्द के आदि में दुहरा दिया गया है। उपयुक्त उदाहरण में से यदि चौपाई को निकालकर अन्तिम दोहा छन्द के आदि में रख दे




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