उपनिषद साधना | 108 Upnishadh Sadhna

108 Upnishadh Sadhna by पं० श्रीराम शर्मा आचार्य - pandit shree sharma aachary

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४१ ]) नि “इपस्त्र के अध्ययन और गुरु के उपदेश बिना आतंमज्ञान वह दि । अधिकारी जिज्ञासु, शास्त्राध्ययन और सदगुरु इन तीनों के संयोग से ही आत्मज्ञान प्रकाश में आता है | आचार्षी हे विधा विहिंता साधिष्टं प्रापत्‌ “आचार्य के चिना परादक्ति स्वरूपा क्रह्म वि स्वेधि- छित होती ही नहीं । ” .... मन्त्र, साधनों विधान, स्वाध्याय और संयम का जंसा महत्व है वैसा ही गुरु के सहयोग का भी है। उचित मार्ग” दर्दन से आधी कठिनाई तो स्वयमेव हल हो जाती है। इस लिये गुरु को भी एक प्रकार से मंत्र एवं देवता ही माना गया है । ः यथा घटरन कंलदा: कुम्भश्जैकार्थ वाचकाः ! लथा मंत्री देवता च गुरुदचैकार्थ वाचकों: । ग प्जिस प्रकार घट, कलदा, कु भ एक ही वस्तु के कई नाम - हैं, उसी प्रकार मत्न, देवता और गुरु एक ही तत्व के नाम हैँ. 1 पत्थानो वहुवः प्रोक्ा मन्त्र सास्त्र सनीघिभिध । स्वगुरोमंतयाश्रित्य॑ शुभ को्य न चास्यथा ॥ “ब्रेहुत से सार्ग हैं, अनेक मन्त्र एवं शास्त्र हैं पर अपने शुरु के मतानुसार मार्गालम्बन करने से ही झुभ होता है । इसके विपरीत नहीं ।” अनेक कोटि मंत्लाणि चित व्याकुल कारण ! संन्र गुरो: कृपा प्राप्मेक स्यात्‌ सर्वसद्धिदम्‌ ।. ' «गणित मन्त्र तो चित की व्याकुलता के कारण दी सिद्ध. होते हैं । गूरु की कृपा से प्राप्त हुआ एक मन्त्र ही सर्वे सिद्धियाँ प्रदान करता है । '




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