दोहा कोश | Dohaa Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ तो. हमारे बहुत कम ही विद्वान उसके अस्तित्व को जानते थे । वहुतेरे तो हमारी श्राधुनिक श्रायंभाषात्ों को सीधे संस्कृत से जोड़ते थे । उनको यह पता नहीं था कि संस्कृत को हमारी श्राधुनिक भाषाश्ों से मिलानेवाली कड़ी पालियाँ प्राकृत श्रौर श्रपश्नंश है । श्राज इसे माना जाने लगा हैँ पर श्रव भी बहुत लोग यह निश्चय नहीं कर पा. रहें हैं कि श्रपभ्नंश का. स्थान श्राधुनिक भाषाओं के बीच में हैं या पालि- प्राकृतों में ? अ्रस्तु अ्पभ्रंश के जन्म-दिन का पता लगाना संभव नहीं हैं । संभवत यह परिवत्तेन कुछ समय तक बहुत धीरे-धीरे होता रहा फिर एकाएक गुणात्मक परिवत्तंन होकर दिलष्ट की जगह श्रदिलिष्ट भाषा श्रान उपस्थित हुई-वहू वहीं प्राकृत न होनें पर भी कितनी ही बातों में वहीं प्राकृत थी । श्रपभ्रंश का सारा दब्द-कोण श्र उच्चारण-क्रम प्राकृत का था पर व्याकरण की श्न्य विशेषताएँ आधुनिक अवधी-ब्रज-भोजपुरी-जैसी । यह घटना छठी दाताब्दी के अन्त में किसी समय घटी । इस सारी शताब्दी को हम प्राकृत श्रौर भ्रपश्रंश की सीमा-रखा मान सकते हें उसी तरह जिस तरह ईसा-पुर्व प्रथम दताव्दी को पालियों श्र प्राकृतों की सीमा-रेखा तथा ईसा पूर्व सातवीं सदी को छान्दस श्र पालियों की सीमा रेखा । इस प्रकार सरहपाद नई भाषा श्रौर नये छन्दों के यूग के झादि- कवि हूं। इतना ही नही सन्त-सिद्ध परम्परा के झ्रादि-सिद्ध होकर वह श्राध्यात्मिक तौर से भी नई दिशा दिखलानेवाले हें । शायद उन्हें द्वितीय बुद्ध कहकर लोग श्रतिशयोक्ति से काम नहीं लेते । प्रमाण- शास्त्र में उनके परम गुरु शान्तरक्षित को द्वितीय धर्मकीति कहा जाता था । सरह को परम्परा में ही. सिद्ध शान्तिपा रत्नाकरशान्ति हुए जिन्हें कलिकाल-सर्वेज्ञ कहा गया जो जन कलिकाल-सर्वेज्ञ हेमचन्द्र से एक दाताब्दी पहले हुए थे । ४२ सरहद का व्यक्तित्व १. जीवनों सरहपाद की जीधनी के संबंध में बहुत-थोड़ी-सी सूचना तिब्बती श्रनुवादित ग्रंथों से मिलती है श्रौर वह सबसे प्रामाणिक हे इसमें सन्देह नहीं ।




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