श्री राम की वन्दना | Shri Ram Ki Vandana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ माएतिक्स धीराम-स्तचन # दे मारुतिकृत श्रीराम-स्तवन है नमो भगयत उतमदल्प्रेकाय मम मारय- छसणशीलप्रताय नम उपदिझिवार्मन चपासित- छोकयय मम साघुवाइसिफपण्यय समो प्रह्मण्यदेवाय मदापुरुपाय मद्दायाजाय सम इति ॥ उभ्फारलरूप पर्तरिफीिं.. मगवान्‌ सीयामकों ममस्कार है | श्ापमें सस्पुरुपोंकि लशतण शीसल लोग लाचरण डिघमान हैं। बाप यो शी संपतपिष्ट सोकाराघनतत्पर सापुत्ताकी परीक्षा लिये कसौटीफ्े समाम और छस्पन्त आह्ण-मक्त हैं । ऐसे महापुस मददाराज रामको इमाए पुनः-पुन प्रणाम है | यह हद दियुद्धालभषमात्रमेश्त सतेशसा . प्यसतगुणम्पदस्थम्‌ । प्रत्यक्‌ प्रधास्त सुधियोपम्भन द्नामरुप॑. मिरद प्रपये ॥ मगयन्‌ | आाप जि्युद्ध शोवमात्र अद्तीय सपने खरूपके प्रकाशसे गुणेकि कार्यकूप जाप्रदादि सम्पूर्ण भवस्पाओँंफा निरास बरनेपाऐ सर्वान्‍्तरामा परम शाम्त झुद्द मुद्धिसे प्रण किये जानेपोग्य नाम-रुपपसे रडित और अदंकारसर्य हैं है आपकी पारणों हूँ । मत्योधतारस्स्विद्द . मर्स्यंथिक्षणं रदोवधायेय मे केघर्ल घिभोः । कुतो डस्यया स्याद्रमतः सर भात्मना सीताछतानि भ्पसनामीश्यरस्प ॥ प्रभो छाफका इस पराघामपर मनुष्यर्पगें अवतार केफ्ल राक्षसोंकि धके लिये दी नहीं है इसका मुख्य उदेश्य हो मनुष्योंको विश्ता देना है | कन्यपा अपने झरूपमें दी रमण कतनेबाले साक्षात जगदात्मा जगदीचरवय सीताजीके हिसोगरमे इतना दुम्स कौसे दो सकता था । से थे स भारमाइ5रमवता सुइसमः सक्तस्िस्पेक्या भगधान घाहुदेपः न... स्रीठत. फदमलमश्लुवीत न टइमण खापि दिदाहुमदंति धर आप भीर पुरुषोंके आएमा और प्रिफ्तम मगलान्‌ वाछुदेव हैं श्रिलेकीकी किसी भी कस्तुमें आपकी गाससि मददीं दै | शाप न तो पीताजीके लिये मोदकों ही प्राप्त हो तफते हैं घर ने छामणजीका स्याग दी कर सकते हैं । आपके ये म्पापार करेप्रठ स्मेकशिशीक दिये ही हैं । न जग्म नूनें महतो मे सोभगं न पाथ्ून युरिमोंदतिस्तो पहेलुः तैयद्विरशनपिं. नो. वनौकस- ब्पकार सफ्ये यत सदमणाप्रज्ा ॥ हे राम उत्तम बु्में जन्म सुन्दरता पाक्सातरी बुद्धि और श्रेष्ठ योनि--नमेंति कोई भी गुण आापी प्रसमताका कारण नहीं वो सपता पद शत दिलानेफे ही छिये आपने इन सब गु्ेंसि रहित हम सनवासी सामरोंते मिथ्रता की है । छुरोडसुरों पाप्यय पामरों तरः सर्वात्मना यः छुरवशसुमम 1 भजेत शर्म मजुसाछर्ति हर्रि य उसरामनयत्फोसस्मग्दिषमिति ४ देक्ता अपर बानर अथया मनुष्प--कोई भी दो उसे सब प्रफारसे श्रीगमरूप पुरूमेसग आपका ही मजन करना चाहिये क्योंकि आप नरस्पमे साशाद शीडरि ही हैं छोर योड़े फियेको भी यदुत कमिक मानते हैं । शाप ऐसे आमित-कसछ हैं. कि व सामे दिव्य घागको पघारे थे ता समस्त उत्तरबोसल- यासिरयोकों मी अपने साथ दी ले गये थे | ( भीमस्ागदत ५ | ९ | इन ) नज़फिडिकिललीाा




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