राजस्थानी कहावत कोश | Rajsthani Kahavat Kosh

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Rajsthani Kahavat Kosh by गोविन्द अग्रवाल - Govind Agarwalभागीरथ कानोडिया - Bhagirath Kanodia

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भागीरथ कानोडिया - Bhagirath Kanodia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प द्€. ७१. ७२. ७३. ७४ ७. ७६. राजस्थानी कहावत कोश .. परामिली का से जती है । भोग्या के झभाव में सभी यति हैं । रू० १. रण मिली का से विरमचारी है । २. नई मिली नारी तो सदां विरमचारी । झणसमभ के धागे रोवे श्रापका दीदा खोवे । ना समक के झागे भ्रपना दुखड़ा रोना व्यर्थ है । रू० झांध कै झार्ग रोवै झापका दीदा खोवे । अ्ररासमक्त के भांवे कीं नई समझदार की मौत । ना समभ के लिए तो. कीरति-श्रपकीति समान है लेकिन समकदार की स्श तरह से श्राफत है उसे भला बुरा सब सोचना पड़ता है । .. श्रहूत भाठ से काठी । तंगदस्ती पत्थर से भी कठोर होती है । सणहोरणी होरी नहीं होणी हो सो होय । कद ही रहती है उसे कोई टाल नहीं सकता एवं श्रनहोनी कभी नहीं । पद्य--लाख जतन श्र कोड़ बुध कर देखो किण कोय । अण होणी होवै नहीं होणी हो सो होय ॥। रखी चूकी घार मारी । जरा चूके कि नुकसान हुम्रा । उस्तरे की झनी जरा सी चूकते ही उसकी धार लग जाती है । श्रत तरणावे तीतरी लवखारी फुरठ हू । सारसरे श् गन भ्रमें जद श्रत जोरे मेहू ॥ तीतरी जोरों से वोले लखारी वुरलाये एवं सारस गिरि शिखरों पर ऊंचे उड़ें तो जोरों की वर्षा हो । श्रत पित वाछो श्रादमी सोवे निद्रा घोर । अ्रसपढिया झातम थकी कहे मेघ श्रति जोर ॥। पित्त प्रकृति वाला मनुष्य घोर निद्धा में सोये तो वर्षा जोरों से हो । झ्रति राम वेर है । हर चीज की अति बुरी होती है वह ईश्वर को भी श्रच्छो नहीं लगती । अति सर्वत्र वर्जयेतु । श्रति लोभ च कीजिए लोभ पाप की घार । एक नारेठ के कारण पड़था कुवे में च्यार । संदर्भ कथा--एक पंडित वड़ा लोभी था । एक दिन पुजा के लिए वह एक नारियल खरीदने हेतु वाजार में गया तो दुकानदार ने नारियल की




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