आत्म दर्शन | Atam Darshan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.28 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम भाग दर श्रीचन्द्र--पिताजी इन्द्रिय किसे कहते हैं । और वे कितनी हैं ? ं विमलदास--चत्स जिनके द्वारा संसार के प्राणो विषयों को ग्रहण करें उन्हें इन्द्रिय कहते हैं । हन्द्रियाँ पाँच होती हैं रपशेन जीभ नाक आँखें कान इच्चों में एक स्पशेन इन्द्रिय होती है । श्रीचन्द्र--क्या कहा पिता जी ? क्या ये दक्ष पौधे - चगैरह भी जीव हैं ? सला इनके इन्द्रिय कहाँ होती है ? विभलदास -यदि ये जीव न होते तो ये इक जो तुम सामने देख रहे हो बढ़ते कैसे ? फल कैसे देते ? फूल कैसे लगते ? हरे भरे कैसे दीखते ? अतः इन हर एक पौधों में जीव रहता है ये अपनी जड़ों से रस को जमीन में से खीं चते . हैं क्योंकि जमीन भी एकेन्द्रिय जीव हे । बह भी बुड़ा-कचरा खाद नमक टट्टी पेशाब आदि जो उस पर पड़ते रहते हैं उनसे रस खींच कर झ्रपने शरीर में मिलो कर पुष्ट होती है । जिसे हम उपजाऊ जमीन कहते हैं वहीं उपजाऊ जमीन नाना प्रकार के बीजों को अपने गे में रख अपना रस देकर उन्हें उगाती है श्रौर धीरे धीरे उन्हें बढ़ाती है । उसी जमीन का भाई पानी है । उसमें भी ऐथ्वी की तरह एक इन्द्िंय जीव होता है । वह अपने पौधे रूपी बच्चे को बढ़ाने के लिये अपने भाई पानी से सहायता लेती है और उन
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