बीजक कबीरदास सटीक | Bijak Kabirdas Satik

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Bijak Kabirdas Satik by विश्वनाथ - Vishvanath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भादिमंगल्त 1 _ श्द तंम ज़रतकी-उ पति करो यहकथा पुराणन में प्रसिद्धदे ३३ ॥ दो तहीस्णडकमख्यंपर लेगीशाब्दकीछाप॥ ्पन्रदासफादया देशड्ारेकडिबाप १ तोने.ब्रह्मरूपी/भराडक सुखपर शब्दकी. .छाप सगी अथात्‌ शब्द्ब्रह्म जो बेदसांर ताको नारायण बुताय दियो -तोनेकों न्नह्मा जपतभये तबवाही ते प्रकटें जे चारों बंद ते ब्रह्माके चारिउ मख ते निकसतसये तीने बेदनको भक्षर जो सम जीवंदे सो जगत्‌ मखहीरि-कियो भर्थीत्‌ जिगते मुख भय देख्यां तेबंद्ोरें हेके वह मायाते तब लित जोहै। ब्रेछसज़ाकी /सागे बाप- कहियाें हैं जो रडतें झरड जीवनको कके-डस्पन्न करेंसी दडादारेते कहेदशों इद्रिनते कढ़ंतमयो तब इंपद्रिनकी-विष्यंह्िके ईंद्री-हेके चिदेशादैफे चिदेचिंदास्मकं लशगतूहोत भषो भथीत- बेदनको .भयथेंदजब जगंत्‌ मख देख्यो तब्व़हेजीव विदेंचिदाइमकं जगतकी धघोखीं- घ्माही देखत भयो सो जगत्‌तों साइबके लोक .प्रकाशकों शरीर हेतोंनेको वेदार्ष करिके घोखा न्रह्मदी..देखत .मयो यही घोखाहे तातपयेके के बेद जोसाइंबकी कहे हे ताकों ने. जानते भये लेघे रकार॑ की अकार ते नोरोंयंणमेये तिनेतेब्रह्माकी उत्पत्तिभंद् सो कदिआये अरु .वहिति जेतो जगत. उत्पन्नको प्रयोजन रहो सो. कद़िगये अवफेरि सिंदावलाकनक रिक पंचम ब्रह्मकी प्राकट्यकह दे १४ ॥ दो श्पहिंतेंज्योतिंनिरंडजन प्रेकटेस्टपनिधान ॥ काल अंपरबलबीरंमाती नलाोकपरंघान १५६ हक है हे तेदिते कहे. वही रामनामते व्यज़ज़न मकारकों जो भथेकरि आाये हें तामिं जो अंकार रही हे. ताकों महाविष्ण भूथ करतभये . जविरजञाकिपार पर बैकणठमें रहेहें जिनके मेडातेरमा वकूरठबासी मगवनि-संये हें सो अच्जन ज्ो.झविद्यामाया तात वे. रद्त दें काहेतें कि अविद्या मांया बिरजाके यहीं पार भर .वबननह पे पु- डँ




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