पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास | Pashchatya Darshano Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ छोर दुःसादस की सफाई में में केबल इतना ही कहना चाहता हूँ कि पहले की पुस्तक से इसका रंग ढंग घहुत कुछ बदल गया हे और इसमें मेरे व्यक्तिगत विचारों का भी बहुत कुछ समावेश हो गया है। इसके सिवा प्रारम्भिक भाग के एवं तृतीय खंड के दूसरे भाग को जो कि विलकुल नया जोड़ा गया है तथा ऐेटो बकते काणट छादि के वणुनों को जो कि दोबारा नए सिर से लिखे गए हैं . छोड़कर यह घतलाना कठिन है कि शेप ग्रंथ में ब्तमान लेखक का कितना भाग है और पांडेयजी का कितना। पथ पुस्तक के बहुत से ंशों को काम में लाने से मेरे समय छोर परिश्रम की जो बचत हुई उसके लिये पांडेयजी की सददायता स्वीकार न करना मेर लिये घोर कृतप्नता होगी । किन्दु सी के साथ रूपान्तरित पुस्तक के लिये पृथ्य पांढेयजी को उत्तरदायी ठहराना अथवा अपने साथ उत्तरदायित्र में शामिल करना उनके प्रति छन्याय दोगा। पांडेय जी की पुस्तक का जो कुछ अंश मेंने इस पुस्तक में सम्मिलित किया है उसके लिये में उत्तरदायी हूँ किन्तु जो कु मैंने घटाया घढ़ाया दै मौर जिसका ऐएथक्‌ करना कठिन है उसके लिये में पारडेयजी को किस प्रकार उत्तरदायी ठहटराडं विशेष कर जब कि दार्शत्रिक विचारों में मेरा उनसे मतभेद है । यद्यपि इति- हास लेखक निप्पक्ष होने का यथा शक्ति प्रयन्न करते रहते हद और कभी कभी इस काय्य में सफलता प्राप्त कर लेने की भी डींग मारते हैं तथापि वे इस प्रकार की सफलता से बहुत दूर रत हैं। बिलकुल निष्पक्ष द्वोकर दृशन शाख्र का इतिदास लिखना उतना ही कठिन है जितना कि पच्षह्वीन पद्षी के लिये हवा में दढ़ना । पत्ती के लिये दो पद् चाहिएँ किन्तु इतिहास-लेखक के




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