मेरी यादों के चिनार | Meri Yadon Ke Chinar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.72 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट्राउट मछली जब से मांजी मायके गई थी मेरे पिताजी बड़े खुश थे क्योकि भेरी मां ने पांच साल के वाद मायके जाने का नम लिया था । घौर इतना झरसा साथ रहने से श्रादमी ऊब जाता है पिताजी सरदार छपालसिह माल मंत्री से कह रहे थे यानी जब देखिए मद्द-प्रौरत एकसाथ जोंक की तरह चिपटे हुए हूँ । कभी हटने का नाम ही नही लेते । इतने भरसे तक अगर सगवान भी मेरे साथ रहे तो मुझे उससे नफरत हो नाए श्रौरत तो फिर श्रौरत है। वाह क्या बात करते हो ? सरदार कृपालसिह भड़ककर बोले मेरी घरवाली तो इवकीस साल से मायके नही गई । हमारा जी तो कभी एक-दूसरे से नहीं ऊचता । ई ग्रापकी वात दूसरी है सरदारजी मेरे पिता बोले श्राप मशीरेमाल हैं। श्रापको महीने मे वीस दिन बाहर इलाके मे दौरे पर रहना पड़ता है । . अपने-भ्राप महीने मे वीस दिन बीवी से श्रलहृदगी हो जाती है। बीस दिन के बाद घर झाना कितना अच्छा लगता होगा । यहां तो हर रोज़ ही घर पर रहना पड़ता है। अब देखिए बीवी झ्रपने सायके गई है तो यह घर कितना अच्छा मालूम होता है। मैं अपने-्रापको कितना श्राज़ाद श्रौर वेफिक्र महसुस कर रहा हूं। तीन-चार महीने के वाद बीवी की याद सताने लगेगी । तब उसका झभ्राना कितना अच्छा लगेगा । मेरे खयाल में तो श्रौरतों को जबरदस्ती तीन महीने के लिए मायके भेज देना चाहिए । राजा साहब को इसके लिए एक कानून वना देना चाहिए । सरदार कछुपालसिंह बोले राजा साहव का बस चले तो झपने महल की
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