मेरी यादों के चिनार | Meri Yadon Ke Chinar

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Meri Yadon Ke Chinar by कृष्ण चंदर - Krishna Chandar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट्राउट मछली जब से मांजी मायके गई थी मेरे पिताजी बड़े खुश थे क्योकि भेरी मां ने पांच साल के वाद मायके जाने का नम लिया था । घौर इतना झरसा साथ रहने से श्रादमी ऊब जाता है पिताजी सरदार छपालसिह माल मंत्री से कह रहे थे यानी जब देखिए मद्द-प्रौरत एकसाथ जोंक की तरह चिपटे हुए हूँ । कभी हटने का नाम ही नही लेते । इतने भरसे तक अगर सगवान भी मेरे साथ रहे तो मुझे उससे नफरत हो नाए श्रौरत तो फिर श्रौरत है। वाह क्या बात करते हो ? सरदार कृपालसिह भड़ककर बोले मेरी घरवाली तो इवकीस साल से मायके नही गई । हमारा जी तो कभी एक-दूसरे से नहीं ऊचता । ई ग्रापकी वात दूसरी है सरदारजी मेरे पिता बोले श्राप मशीरेमाल हैं। श्रापको महीने मे वीस दिन बाहर इलाके मे दौरे पर रहना पड़ता है । . अपने-भ्राप महीने मे वीस दिन बीवी से श्रलहृदगी हो जाती है। बीस दिन के बाद घर झाना कितना अच्छा लगता होगा । यहां तो हर रोज़ ही घर पर रहना पड़ता है। अब देखिए बीवी झ्रपने सायके गई है तो यह घर कितना अच्छा मालूम होता है। मैं अपने-्रापको कितना श्राज़ाद श्रौर वेफिक्र महसुस कर रहा हूं। तीन-चार महीने के वाद बीवी की याद सताने लगेगी । तब उसका झभ्राना कितना अच्छा लगेगा । मेरे खयाल में तो श्रौरतों को जबरदस्ती तीन महीने के लिए मायके भेज देना चाहिए । राजा साहब को इसके लिए एक कानून वना देना चाहिए । सरदार कछुपालसिंह बोले राजा साहव का बस चले तो झपने महल की




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