शरत् - साहित्य भाग - ७ | Sharat - Sahitya Bhag - 7
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.82 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
श्री कान्त - Shri Kant
No Information available about श्री कान्त - Shri Kant
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दतीय पे श्श हैं उनसे में और कया कहूँ 1 भीतर दी भीतर एक लम्बी संस लेकर मैं मौन हो रददा । ऐसी सेनिकी-सी जगह छोड़कर क्यों उस मदभूमिके बीच निर्बान्थव नीच आदमियोंकि देदमें राजरूदषमी मुझे लिये जा रद्दी है सो न तो उससे कहा जा सकता है और न समझाया ही जा सकता है । आखिर मैंने कद्दा शायद मेरी बीमारीकी वजहसे दी जाना पढ़ रहा है रतन । यहाँ रहनेसे आराम दोनेकी कम आशा है सभी डाक्टर यहीं डर दिखा रहे हैं । रतनने कहा छेकिन बीमारी क्या यहँँ और किसीको होती ही नहीं बाबूजी ? आराम होनेके लिए क्या उन सबको उस गगामाटीमें ही जाना पढ़ता है सन ही मन कहा मादूम नहीं उन सबको किस माटीमें जाना पढ़ता है । हो सकता है कि उनकी बीसाशि सीधी हो हो सकता दै कि उन्हें साधारण मिट्टीमें दी आराम पढ़ जाता हो । मगर दम लोगोंकी व्याधि सीधी भी नहीं है और साधारण भी नहीं इसके लिए शायद उसी गगामाटीकी दी सख्त जरूरत है । रतन कहने ठगा साजीके खर्चका हिसाब किताब भी तो हमारी किसीकी समझें नहीं आता । वहीं न तो घर-द्वार दी है न और कुछ । एक युमाइता है उसके पास दो हज़ार रुपये भेजे गये हैं एक सिट्टीका मकान बनानेके लिए देखिए तो सही बाबूजी ये सब कैसे ऊँटपर्टाग काम हैं । नौकर हैं सो हम लोग जैसे कोई आदमी ही नहीं हैं उसके क्षाम और नाराजगीको देखते हुए मैंने कहा तुम वहाँ न जाओ तो कया है रतन जबरदस्ती तो तुम्हें कोई कहीं ले नहीं जा सकता ? मेरी बातसे रतनको कोई सान्त्वना नहीं मिली । बोला माजी ले जा सकती हैं । क्या जाने क्या जादू-मन्न जानती हैं वे अगर कहूँ ककि तुम लोगेको जमराजंके घर जाना होगा तो इतने आदमियेंमिं हमर्मेंस किसीकी हिम्मत नहीं कि कह दे ना । यह कहकर वह मुँह भारी करके चला गया । बात तो रतन गुस्सेसे ही कद्द गया था पर वह मुझे मानो अकस्मात् एक नये तथ्यका सवाद दे गया । सिर्फ मेरी दी नहीं सभीकी यह एक ही दशा है । उस जादू मन्नकी बात ही सोचने लगा । मन्न-तन्नपर सचमुच ही मेरा विश्वास है सो बात नहीं परन्तु घर-भरके लोगोमिं किसीरमें भी जो इतनी-सी दक्ति नददीं कि यमराजके
User Reviews
No Reviews | Add Yours...