राम चंद्रिका | Ram Chandrika

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पीतांबरदत्त बड़थ्वाल - Pitambardutt Barthwal

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भगवानदीन - Bhagawanadeen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) राजा वीरसिंहदेव को इस बात का खेद था कि काल के _ प्रभाव से यह विद्न्मंडली छिन्न हो जायगी । किसी ने उन्हें ्श 7 बतलाया कि यदि एक ब्ृहदू यज्ञ करके राजा समेत सार्री चिद्वन्मसडली उससे भस्म हो जाय तो प्रेतयानि से झन त काल तक उनका साथ बना रहेगा। कहते हैं राजा वीररसिंह ने यहीं किया । छोड़े मे वह यज्ञस्थल झब तक बतलाया जाता है। नहीं कह सकते कि इस कथानक मे सत्य का अझश कितना है। यदि सब लोगों का किसी यज्ञ मे जल मरना सत्य है तो इंसका किसी यज्ञ के समय ्याकस्सिक दुर्घटना का परिणाम होना अधिक सभव है । रपर की दोनेां घटनाएँ यदि और नहीं ता इतना श्वश्य सूचित करती हैं कि गोसाईजी के रहते ही केशवदासजी की मृत्यु हो गई थी। तुलसीदासजी की सत्यु स० १६८० में हुई थी । और केशव की झा तिम रचना जहाँगीर-जस-च द्रिका में निर्माण-काल सं० १६६९ दिया हुआ है। इससे निश्यय है कि केशवदास की स्ृत्यु स० १६६९ और १६८० के बीच किसी समय मे हुई होगी। कुछ विद्वानों के अनुमान से सब १६७४ उनका सृत्यु-सवत्त होना चाहिए । आइले के व्यासपुरा मुदल्ले मे इमली के एक बहुत पुराने पेड के निकट एक खेंडहर है। कहते है यही केशवदास का संकान था। इमली का पेड़ भी उन्हीं का बतलाया जाता है ।




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