अभिमन्यु - बध | Abhimanyu - Badh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. कप... उमेंगि समन्यु अभिमन्यु वीर वोल्यों तात होहु ना अधीर भीरि यह दरि देहों सै । सरस बखाने चक्रव्यूह कौ कुचक्र सेदि चक्रघर-सिच्छा की समिच्छा करि लैहौं मैं ॥। दुष्ट दुर्जोघन दुसासनादि कौरव की गोरब-गुमान हे सरुप्ट गरि देहों में । राखि रजपूती बैठि रावरे छृपा-रथ पै पारथ की सारथ सपूती करि एहो से ॥। १३ 3 सुनि अभिसन्यु की उसग भरी वानी बर वीर भये दंग रंग श्ौरे बाग चढ़िगो । सरस बसानै किन्तु बर्मराज हे प्रसन्न सन्न है रहे त्यो द्विविधा सौ सन मढिगो ॥। चाहत सरादत दिये से चाल-पन लेखि वालपन देखि हाँ नद्दीं कछू न कढिगों । त्यो ही भीस भाखे तात साखे मन काहे सुनौ व्यूह है हमारो जो ढुलारो वीर बढ़िगों ॥




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