कौटल्य की शासन पद्धति | Kautilya Ki Shasan Paddhati

Kautilya Ki Shasan Paddhati by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय प्रवेश प्र इस से स्पप्ट है कि दंड नीति श्ररथात्‌ राजशास्त्र को प्रत्येक ही सम्प्रदाय पक स्वतंत्र विद्या मानता है। यहाँ तक कि श्रौशनस सम्प्रदाय तो उसे दही एकमात्र विद्या स्वीकार करता है। इसके विपरीत श्रान्वोक्षकी को तीन और डायी को दो. सम्प्रदाय सतंत्र विद्याएँ नहीं मानते । यद्यपि श्ाचार्य कौटल्य ने. विद्याएँ चार मानी हैं तथापि वइ दंड नीति को विशेष महत्व देता है । दूसरे प्रकरण में वह लिखता है कि झन्य तीन बविद्याद्ों का मूल दंड नीति ही है शास्न-हानपूवक प्रयुक्त की हुई दड नीति जीव- धारियों के योग श्र क्षेम का कारण होती है । क्षि उद्धरण में तीन राजनैतिक सम्प्रदायों के नाम आये हैं। इन के श्रतिरिक्त श्राचाय॑ ने श्रर्थशात्र में स्थान-स्थान पर श्रन्य पूरववर्ती राजनीतिज्ञों के मत का उल्लेख किया है तथा दूसरे श्रघि- करण के दसवें श्रध्याय के श्रन्त में लिखा है कि उसने सब शास्त्रों को श्रच्छी तरदद जानकर तथा उन के प्रयोगों को भली भाँति समभ- कर राजा के लिए इस शासन-विधि का उपदेश किया है । इस से स्पष्ट है कि कौटत्य से पहले ऐसे श्रनेक राजनीति-ग्रन्थ थे जिन्हें स्वयं कौटव्य ने श्रष्ययन किया और सम्भव हैं कुछ ऐसे भी हों जो उसके देखने में न श्राये हों। इस प्रकार हमारे प्राचीन साहित्य में राजनीति का श्रवश्य ही श्च्छा स्थान रहा है | साम्राज्य निरम्मांखु--इमारे पूवंज राजनीति के सिद्धान्तों के विवेचन श्रर्थात्‌ इस विषय की साहित्य-रचना से ही संतुष्ट नहीं हो गये थे | उन्हों ने प्रतिपादित सिद्धान्तों का सम्यक्‌ व्यवद्दार भी किया श्रौर ऊ री




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