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Hindi-sabd-sangrah by मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव - Mukundilal Srivastavaराजवल्लभ सहाय - Rajvallabh Sahaya

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मुकुन्दीलाल श्रीवास्तव - Mukundilal Srivastava

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राजवल्लभ सहाय - Rajvallabh Sahaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अशोरिया अशोरिया--पु० खेत रखानेवाछा रखवाछा । अगोनी--स्त्री० नगवानी । क्रिवि० पहिले आगे इन्दिरा अगीनी इन्दु इन्दीवर औनी महा सुन्दर सलौनी गजगौनी गुजरातकी । रवि० ६१ अगौरा--पु० गन्नेका ऊपरकी ओरका हिस्सा । अगोरें--क्रिवि० आगेकी ओर आगे । असि--स्त्री आग गर्मी जठराग्नि । अस्िक्मे--पु० हवन । दाहक़िया । अग्निकुमार--पु० कातिकेय । अग्निजिह्न--पु० देवता । अग्निदाह--पु० आगमें जछाना शवका अग्दिसंस्कार । अग्निदीपक--वि० जठराग्निको प्रदीप करनेवाला भूख बढ़ानेवाला । अग्निपरीक्षा--स्त्री अग्नि-शुद्धि किसीको आगपर बेठाकर आग हाथपर रखकर या खौछते हुए तैछादि- का स्पर्श कराकर यह देखना कि वह दोषी है या निर्दोष । जागसें डाठकर सोने-चॉँदीकी परख करना । अग्निबीज--पु० सुवर्ण सोना । अग्निभू--पु० पढ़ानन कार्ततिकेय । अग्निसणि--पु० सूर्यकान्त मणि । आतशी शीका । अग्निमुख--पु० देवता । प्रेत । ब्राह्मण । चीते या मिलावेका वृक्ष । अग्निचल्लम--पु० साखूका पेढ़ या उसकी गोद । अग्निशिखा--स्त्री० भागकी ज्वाछा । अग्निदयुद्धि-स्त्री देखो अग्निपरीक्षा । अग्निसंस्कार--पु० जलाने या अग्निस्पर्श करानेकी क्रिया दाहक्रिया । अग्निद्दोन्न-पु० वेदोक्त मन्त्रोद्चारण-सदिति साय प्रात हवन करनेका कार्य । _अग्य--वि० देखो अज्ञ । रामा० ६७ अग्या--स्त्री आज्ञा भग्या सिरपर नाथ तुम्हारी । अग्यारो--स्त्री धूप इ० जलाना । घूप देनेका पात्र । अग्रन--वि० भगछा उत्तम । पु० अगला हिस्सा सिरा । . क्रिवि० सामने या आगे । अग्रगण्य--चि० प्रथम गणनीय श्रेष्ठ । अग्रज--पु० बढ़ा भाई । नेता भयणी । वि० श्रेष्ठ । अग्रजन्मा अश्जाति--पु० ब्राह्मण | सन्नणी--पु० नेता नायक । - ( हर ) लयकनयरनायलनलनन्यननलनयनननननरनननननननननननननननननननरनननननथनननणणनणणानााााालतल्‍स्‍तयल्‍त्तल्‍स्‍ई।एस्‍ततल्‍ए।ल्‍ातएयणयएयएतएतए।ए।।एल्‍गल्‍एस्‍एएल्‍ल्‍ए।ल्‍ल्‍ल्‍ल्‍एय।जएल्‍एएल्‍ल्‍स्‍तए।।ल्‍ल्‍ल्‍स्‍ए।।ल्‍्ल्‍स्‍तयएयएय। अचंभव अग्रदूत--पु० पहला सन्देश-वाहक पहला नेता नेता । अ अ्र्योची--पु० पहलेसे विचार करनेवाला दूरदर्शी । अग्रसर--वि० प्रघान । पु० जो आगे जावे नेता । अग्रह्मायण--पु० अगदन या मार्गशीपषंका महीना | अध्ाशन--पु० देवादिके निमित्त पहलेसे निकालकर रखा हुआ भोजनका भाग । अग्राह्म--चि० अग्रदणीय त्याज्य न लेने योग्य । अध्रिम--वि० अगला श्रेष्ठ । पेशी । अध््य--वि० श्रेष्ठ । पु० ज्येष्ठ आता । अघ--पु० पातक दुम्ख अधर्म 1 अघर--वि० न होने योग्य कठिन । जो कम न हो जो न चुके दीपक दीन्दा तेढ सरि बाती दूई मघट्ट । साखी ६ । स्थिर । हल अघडदित--वि० जो न हुआ हो । भमिट काल करम गति अघटित जानी ।? रामा० २०७८ । न घटने योग्य जो कम न दो प्रचुर । सम्भव अपोग्य । अघवाना--ससक्रि० ( भोजन इ० से ) सन्तुष्ट करना । अघाउ--पु० दृप्ति सन्तोष ता मिसि राजकुमार विलोकति दोत भघात न चित्त पुनीता । रघु० १०५ अघात--पु० नाघात चोट प्रह्वार बुंदु अघात .स्देगिरि कैसे । रामा ४०२ । वि० मन भर बहुत | अघाना--उबअअक्रि० भफरना तृप्त होना जासु कृपा नहिं कृपा अघाती । रामा० २१ । पूर्णतः सन्तुष्ट द्ोना थकना प्रभु बचनासत सुनि न अघाउँ । रामा ०५८४ । घघाइ - भघाकर ( पूर्णतः ) । अघी--बि०५ पातकी पापी कुकर्मी । अधघोर--पु० शिवजी । सम्प्रदाय विशेष । वि० घोर नहीं सुद्दावना । घोर अत्यन्त विकराल । अधघोरनाथ--पु० महादेवजी । अधघोरी--पु० अघोरपन्थी । घणित सनुष्य । वि० घणित गन्दा एते पर नदिं तजत अघोड़ी-कपटी कंस कुचाली 1 सूबे २८० अघोष--वि० निःशब्द नीरव । ग्दालोंसे रहित । कवर्गादि पाँच वर्गोके प्रथम दो अक्षर.तथा दा प और से । अघोघ--पु० अघ + भोघ--पार्षोका समूह । अपघ्रानना--सक्नि० गन्ध लेना । अचंचल--वि० जो चब्नछ न हो स्थिर गम्भीर शान्त । अचंभव--पु० भचरस्भा आश्चर्य एक अचस्भव दोत बढ़ीं




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-05 15:02:40
    Rated : 8 out of 10 stars.
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