जय अमरनाथ | Jai Amarnath

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काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

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यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दिल्‍लो से श्रीनगर ह्र््‌ जम्मू तक का रास्ता बहुत मामूली है। ऐसा रूगता है मानो किसी मैदानी प्रदेश मे चल रहे है । न ऊचें पहाड न जग । पठानकोट से जम्मू ६७ मील है। १२ बजे के लगभग पहुचे। जम्मू काइमीर का एक बड़ा नगर है। शीतकाल मे काइमीर की राजधानी श्रीनगर से हटकर यहीं आ जाती हैं। उचाई कुछ १३०० फूट है। कई दशेंनीय स्यल हे। रघुनाथजी का मदिर बडा विशाल है । उसे देखकर और बाजार मे एक चक्कर लगा कर आगे वढे । अब मार्ग इतना सुन्दर था कि बिना देखे उसकी कल्पना नहीं की जा सकती । उचाईं ज्यो-ज्यो बढती गईं दृश्य एक-से- एक बढकर आते गये । सयोग से हमारी टोली मे वयोवृद्ध से लेकर महिलाएं तथा बालक सब थे पर ऐसा जान पडता था मानो उत्साह ने आयु के अतर पर श्रावरण डालकर सबको एक पक्ति मे खडा कर दिया । बात-बात पर हम लोग अट्टहास कर उठते थे और प्रत्येक सुन्दर दृश्य को देखकर आनन्द से उछल पड़ते थे । ४२ मील पर ऊधमपुर आया वहू महत्वपूर्ण सैनिक केन्द्र हूं। शाम को चार बजे हम लोग कुद पहुंचे । उसकी उचाई ५७०० फूट है। बडी सुन्दर जगह है। चीड और देवदार के घने जगल हूं । जलवायु स्वास्थ्यप्रद है । रात हम लोगो ने कुद से कुछ आगे बटोत में बिताई। यह स्थान कुद से थोडी निचाई पर है। ठहरने के लिए डाक बगला है । छोटी-सी बस्ती और बाजार भी है। अगले दिन सबेरे ही वहा से रवाना होकर ८ वजे रामवन पहुंचे । रास्ते की णोभा वर्णनातीत थी । पठानकोट से निकलते ही रावी नदी मिली थी जम्मू से कई मील तक तवी साथ रही और बटोत के बाद चिनाव मिल गई । उछलती-कूदती कल-कल निनाद करती वह वही जा रही थी । पवेंतो के योग से उस द्वारा




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