बुद्ध और बौद्ध साधक | Buddh Aur Bauddh Sadhak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुद्ध के स्वभाव व जीवन की विशेषताएँ यही उनकी सम्पदा हे। थेरगाथा(६४ ६-६७) । सहाकाश्यप ने सी इसी का साचय देते हुए कहा है सदा चरति निव्वुतो ्र्थात्‌ मददाज्ञानी बुद्ध रादा निर्वाण प्राप्ति की अवस्था से ही विहरते हें । इसे ही हम -योतस का बुद्धत्व कहते हैं । सगवानू बुद्ध के विषय से कहा गया है कि उनका कोई ऐसा छिपा हुमा कायिक या मानसिक कर्म नदी था जिसके लिये उन्हें चित्त का खन्ताप उठाना पड़े या दूसरों के सामने लोडिजत होना पढे । उनका बाहर भीतर एक था । जिन नियमों का उन्होंने उपदेश दिया उनका स्वयं पूरा पातन किया । फिर भी वे झपने को अति-माचुषी कोटि में नही रखना चाहते थे । उनमे बुद्धत्व की पूर्ण क्षमता थी किन्तु साथ ही झपूवं विनघ्रता भी । संयुत्त-निकाय का एक प्रसंग इस सम्बन्ध से अत्यन्त सहत्वपूर्ण है । एक दिन अझगवान्‌ पूर्णमासी के दिन खुली जगह से मिछुओों सदित बेठ हुए थे। राल्ध्या का समय था। सिछछ लोग भविष्य के संयम के लिए अपने अपराधों की देशना (क्षमा- याचना) कर रहे थे । समके बाद मे भगवान्‌ ने सिछुयों को सस्बोधित किया सिछुओं यदि मेरे अन्दर कोई काया सम्बन्धी वाणी सम्बन्धी या विचार-सम्बन्धी दोष देखते हो तो सुने चतलात्ओ । इसी प्रकार जब एक बार एक त्राह्मण ने भगवान्‌ से एछा भन्ते क्या आप दिन मे सोने की थ्रनुमत देते है ? तो भगवान्‌ ने अत्यन्त सिनख्रता-पूचंक और स्पप्टतापूर्वक स्वीकार किया-- पिछुले गर्मी के महीने में एकबार सिक्ा से लौटने के बाद सोजन करने के पश्चात सुकके स्मरण ्राता है सीधे करवट से स्खति को सामने रखकर इन्दिय-संयसपू्वक चौपेती लपेटी हुई चादर पर लेटते हुए झपना सपकी लगकर सो जाना । अहि-सादुपी शक्ति का सरावान्‌ तथागत ले कभी दावा नहीं किया उन्होंने सानवीय पुरुषार्थ की सदहिसा गाते हुए सदा यही कहा कि उसके द्वारा जो कुछ लभ्य है चही उन्होंने पाया है । इसीलिए श्रपने आण्को अन्य सब सनुष्यो के




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