काला पुरोहित | Kala Purohit

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Kala Purohit by अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काला पुरोहित 0 जब वद्द कोवरिन्‌ के पास लोटा उसके सुख मण्डल पर आघात श्ावेग श्और वेंदनाओं को भार लदा था । इन नारकीयों के साथ तुम कैसा व्यवहार कर सकते हो --दावेग के उन्माद में द्ाथ मलते हुए वह भुनमुनाने लगा -- कल रात को वह नीच स्पेका खाद की गाड़ी यहाँ लाया थी ओर उसो ने घाड़े को पेह से बाँध दिया.......मूखे ने उसे इतना कस कर बाँध दिया कि रस्सी की रगड़ से दो तीन जगद्दीं को छाल तक कट गई 1. ऐसे आदमी के साथ तुम कैसा व्यवद्दार करोगे ? मैंने उसे फटकारा तो बद्द गिड़गिड़ाने लगा |... भोंदू ...... कायर ........-... उसने फाँसी पाने लायक काम किया है । --गर थोड़े से उद्दिलित क्षणों के पश्चात्‌ जब नीरचता ने उसके मस्तिष्क में प्रवेश किया बदद फिर खिलखिलाकर हँसने लगा। आवेश में आकर उसने कोवरिन को हृदय से लगा लिया. श्रीर उसका मस्तक चूमकर गदूगदू स्वर में कहते लगा--... भगवन्‌ ......मगवन | ...... भगवान्‌ तुम्दारा भला करे कर ---उसके स्वर में श्नेद स्नि्घ कंपन था तुम आओ गये सुझे बढ़ी प्रसन्नता हुई .... श्राद सचमुच श्याज मैं बहुत ही प्रसन्न हूँ | चह उसे अपने उद्यान के विभिन्न कोणों का दिग्दरीन कराने लगा। और उस समय सूर्य श्रपनी समस्त प्रारम्भिक बिभूतियों को बटोर कर चमकने लगा था।. मई के चमकते हुई उस पढले सप्ताइ नें उसके शरीर के मजा-तंतुआ्रों में नव श्फूर्ति का संचार कर दिया । बाल्यकाल की मधुर स्सृतियों ने उसके सस्तिष्क-मंडल में भावन ओं की लद्दर उठा दी ।......इसी उद्धान में किसी दिन छोटा-सा वह खेला करता था । उसमें बुड्ढ़े को गले से लगा लिया । और वे फिर पुराने चीनी के प्यालों में कौम ओर बढ़िया बिस्कुटों के




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