आधुनिक चीनी कहानियाँ | Aadhunik Cheeni Kahaniyan

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Aadhunik Cheeni Kahaniyan by क. म. पानीक्कर - K. M. Panikkarविजय चौहान - Vijay Chauhanशिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

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क. म. पानीक्कर - K. M. Panikkar

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विजय चौहान - Vijay Chauhan

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शिवदान सिंह चौहान - Shivdan Singh Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक पागल की डायरी प्र भी एक सी नहीं है । इन बातों से मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि एक ही बार में यह सारी डायरी नहीं लिखी गई । चँकि फिर भी इस डायरी में दि से झन्त तक एक प्रकार का. तफं-सूत्र सिलता हैं इसलिए मानसिक रौगों के विद्षेषज्ञों के सामने रखने के लिए मैं उसकी नकल उतार रहा हूं। मैंने एक शब्द का थी कहीं ह्ेर-फेर नहीं किया है। केवल नाम बदल दिये हैं यद्यपि थे सारे नाम मेरे अपने गाँव के लोगों के हैं जिन्हें बाहर की दुनिया बिल्कुल नहीं जानती । किन्तु इस से युल पाठ पर कोई असर नहीं पड़ता । जहाँ तक शीर्षक का सम्बन्ध है--रोग से मुक्त होने पर मेरे सिनत्न ने ही यह नाम रखे था और में उसको बदलने का कोई उचित कारण नहीं देखता । अप्रैल २ गण-राज्य का सातवाँ वर्ष ( अर्थात्‌ १६१८ ) डे श्राज बड़ी तेज़ चाँदनी छिटकी हुई है । मैंने ऐसा चमकीला चाँद तीस वर्ष से देखा ही नहीं । आज इसे देख कर श्रपुर्वे ताजगी का श्रनुभव किया है । फिर मुझे ख्याल हुआ कि थे तीस बषष॑ एक स्वप्न की तरह ही गुजर गये । लेकिन मुझे भ्रत्यन्त सावधान रहना चाहिए । नहीं तो-- वाश्रो का कुत्ता मुझ्ते इस तरह क्यों देखता ? श्र बार-बार । मेरे डरने का कारण है । से | श्राज चाँद का. नामोनिशान नहीं । मुझे मालूम है कि कोई श्रनिष्ट कहीं पनप रहा है । श्राज सुबह जब मैं बाहर गया तब खुब सतके था । बड़े चाथो की सुख-सुद्रा अत्यन्त विचित्र हो रही थी । लगता था जैसे चह मुझसे डरा हुधा हो श्रौर बदले में मेरे साथ कोई ठुराई करने की




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