हिंदी धातुकोश | Hindi Dhatu Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिंदी धातुकोश - Hindi Dhatu Kosh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुरलीधर श्रीवास्तव - Murlidhar Shrivastav

Add Infomation AboutMurlidhar Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
७ की उत्पत्ति धातु्नों से नहीं हुई है। कुछ विद्वानों का कथर्न है कि यदि नाम घाहु से निकले हैं तो उन सभी पदार्यों के नाम एक ही होने चाहिये. जो एक ही घातु से निकले हैं। भू धातु के भर्थानुसार तो उन सबको भश्व कहना चाहिये जो पथ पर चलते हों पर व्यवहार में भर्श्व तो पशुविशेष का ही वाचक है। यदि प्रथनु फेलाता से प्ृथिवी दाब्द बना तो प्रथिवी नाम पड़ने के पहले इसका बया नाम होगा ? पर इन शंकाभों के उत्तर में यह तो कहा ही जा सकता है. कि झद्व में झ्रश्‌ का भौर प्रूथिवी में प्रथनु का भाव निहित है। यास्क ने शाकटायन के मत का समर्थन किया है भोर सभी दाब्दों को घातुज सिद्ध करने का भी म्रयल्न किया है। यास्क ने व्यक्तिवाचक नामों को भी धातु से निष्पन्न दिखलाने का प्रयास किया है । एक ही शब्द का झनेक धातुओं से सम्बन्ध भी जोड़ा गया है। यास्क मे वंदिक नामों की निरक्ति इसी प्रकार बतलाई है । ब्राह्मणनप्रन्यो में भी इस रीति से भनेक नामों का विवेचन किया गया है। पारणिनि ने प्रातिपदिक के दो भेद किये हैं--व्युत्पनन भौर झव्युत्पन्न । जिसे दे ध्युत्पन्न कहते हैं उसे ही यारक समदिशात कहते हैं । दुर्गसिंद ने शब्दों के तीन वगें किये हैं- १ प्रत्यक्ष क्रिया जिनकी क्रिया स्पष्ट लक्षित होती है जैसे कारक हारक भादि २ प्रकल्प्य क्रिया जहाँ क्रिया की कल्पना की जाती है जैंसे गो पुरुष भ्रादि भर ३ श्रविद्य- मान फ्रिंया जैसे चन्द्र ्रादि ॥ । पाशिनि ब्युत्पन्न उसे कहते हैं जिसका उचारण व्याकरण के मूल-प्रत्यय-नियमानुसार होता है उणादयों बहुलम सूभ से वद्द यह बताना चाहते हैं कि उणादि प्रत्यय व्याकरण के सामान्य नियमों के मनुकूल नहीं हैं। ये प्रत्यय बहुत कम दाब्दों में जुड़ते हैं। रूढ़ दब्दी की उत्पत्ति भादि प्रत्ययों द्वारा बतायी जाती हैं। पतललि का कथन है कि मैगम भौर रूढ़ दाब्द जिनमें उखादि प्रत्यय लगते हैं साधु दाब्द हैं. नंगमं रूदमवं सुसाधु । शिष्टों के शब्दों को भी प्रमाण माना गया है. शिष्टा शब्देपु प्रमाणमू । कुछ शब्दों की व्युस्पत्ति ठीक से बताने में वैयाकरण भी भतमथं हो गये । दुगेसिह ने कहा है कि मैं भीर भाध्यकार का ध्यिकार भी शाब्दाम्बुधि भ्हं . भाष्यकारइच कुशाप्रकर्घियाबुमी । नंद दब्दाम्दुध पार किमस्पे जडबुद्धप ॥ उपर बताया जा चुका है कि सुपूतिब्न्त पदम सूत्र से पारिनि दी पु पाशिनि ने नाम भौर भास्यात को हो महत्व दिया है। हेलाराज ने भी संज्ञा शरीर क्रिया को




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now