सह्याद्रि की चट्टानें | Sahyadri Ki Chattane

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Sahyadri Ki Chattane by आचार्य चतुरसेन - Achary Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाददाह ने भी हूँसकर पुछा-- शिवा की दादी हुईं या नहीं ? जी हां पूना में इसका ब्याह हुआ है । लेकिन उसने मां-बदौलत को अपना बाप कहा है । बस उसकी एक शादी हमारे हुड्र में होगी श्र हम खुद वाप को सब रसम अदा करेंगे । लड़की की तलाश करो । दाहुजी ने मुककर वाददाह को सलाम किया श्र कहा-- हुक्म तामील होगा । श्रौर दरबार से चले आ्राए । शिवाजी ने डेरे पर लौटकर स्नान किया । बीजापुर में थिवा का दूसरा विवाह वड़ी घूमघाम से हुआ । बादशाह श्रादिलजयाह ने खुद सव भ्रमीर-उमराव के साथ बरीक होकर सब नेग भरुगताए । आाहजी ने भी वाददाह की खुब श्रावमभगत की । नया ब्याह कर शिवाजी थीघ्र हो पुना लौट आए । परन्तु दरार में अपने पिता की जाह के सामने दासता देख उनका जी दुख से भर गया । वे खिन्न रहने लगे । दादा कोंगादेव बड़े अच्छे मुत्सदृदी श्रौर राजनीति-विचक्षण पुरुष थे । उन्होंने दिवाजी में महापुरुषों के लक्षण देख लिए थ । वे कहा करते थे--हमारा थिवा शिव का साक्षातु अवतार है और भवानी का वरद पुत्र है । उन्होंने उन्हें राज्य प्रबन्घ घर्मशास्त्र युद्ध-कौशल की वहुत अच्छी दिक्षा दी । उनके ही अ्रध्यवसाय से इलाके की श्राय और श्रावादी बढ़ गई थी । वे बीच-बीच में शिवाजी को नीति धर्म श्र रियासत के काम की भी दिक्षा देते थे । इस इलाके में मावली लोगों की वस्ती थी जो दरिद्र किन्तु वीर होते थे । दादा ने उन्हें अनुशासन की दिक्षा दी थी । बहुत-सी जमीन देकर उन्हें मेहनती कृषक बनाया था । उन दिनों मरहठों में लिखने-पढ़ने का रिवाज विलकुल न था पर दादा ने शिवाजी की रुचि पढ़ने-लिखने में देखी । घुड़सवारी तीर नेजा तलवार चलाने तथा मल्लयुद्ध में शिवाजी इसी उम्र में चाक-चौबन्द हो गए थे । १८




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