विज्ञान | Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56.49 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७२ पेड़-पौ घोंकी झचरज भरी दुनिया भ्धद री ् ये पे दर के अमन रथ कि ही ौपन््यू पिय हैं हर न पर रस कि झ्ल्ों कि डर दोमा । दीनाके तने भरूमिमें बढ़ते रहते हैं श्र स्थान-र्थान पर उनसे पॉंधघे निकल द्ाते नान्तर बढ़ते हैं इनपर कलियां श्र छिलके होते हैं । इन कलियोंमें से कुछ ऊपरकी श्रोर उगती हैं श्रौर जमीनके बाहर निकल श्राती हैं श्र इनसे पत्तीदार शाखाएं तैयार हो जाती हैं परन्तु अधिक भाग प्रथ्वीके नीचे ही बढ़ता रहता है । इस प्रकारके तनेको भू-प्रकांड कहते हैं । कभी-कभी जड़ोंसे नये पोधघे तैयार होते हैं जैसे शकरकंद रताल ड््देलिया इत्यादि । कुछ दशाशोंमें जब पत्तियां या पत्तियोंका केवल एक भाग पौधेके श्रन्य भागसे श्थक हो जाता है तो नया पौधा तैयार हो जाता है। पथरचटाकी पत्ती जब मिट्टीमें अनुकूल अवस्थामें रख दी जाती है तो उससे नड़े फूट निकलती हैं श्रीर नया पौधा तैयार हो जाता है । जड़ तना और पत्ती पौधे के चानस्पतिकं अंग हैं इसलिये उत्पत्तिकी इस विधिकों वानस्पतिक उत्पत्ति ( या चंश-बृद्धि कहते हैं । इस सरल चिधि द्वारा कौनसे जंतु बंश-चृद्धि करते हैं ? अधिकांशमे बहुकोष्टीय जंतु अपने शरीरके टुकड़ोंसे नये प्राखी उत्पन्न नहीं कर सकते । परन्तु बिना रीढ़के कुछ जंतुओोंमें यह बात संभव है । तारा-मदुली की कुछ जातियाँ ऐसी हैं कि उनकी एक भुजा श्रलग हो जाने पर कटी हुई भुजासे पूर्ण प्राणी तैयार हो जाता हे चंश वृूद्धिकी यह क्रिया साघारण नहीं है। परन्तु बहुत सी जातिको तारा- मछुलियोंकी चंश-वृद्धि सुजा कटने पर इसी रीतिसे होती है । छोटा चपटा केंचुझआा ( प्लेनेरिया ) यदि क्रार दिया जाय तो इससे कई नये प्राणी तैयार होजाते हैं। पुनरुद्वारसे क्या तात्पये हे ? देखनेमें केवल इतना ही नहीं झ्राता कि तारा-मछुलीकी एक शभुजासे नया प्राणी बन जाय बढिकि अंग-भंग हुई तारा मछुलीका कटा अंग फिर तैयार हो जाता है । दोनों ही दालतमें पुनरुद्धार क्रिया होती है जिसका तात्पयं ह- फिर उत्पन्न करना । परन्तु दोनोंमें कुछ मेद है । पहले उदाहरणतः पनरुद्धार द्वारा ऐसी उत्पत्ति होती है कि. छोटा भाग बढ़कर एक पूरे नये पोघोंमें परिणत हो जाता हैं। यह किया इने-रिने जानवरोंमें ही हुशाकरती है। ऐसे पुनरुद्धारके उदाहरण बहुत साधारण हैं लिनमें एक अंगकी ही उत्पत्ति होती हे । बहुतसे बिना रीढ़ वाले जानवरोंमें यह शक्ति पायं। जाती है कि कटी हुई टॉँग ्रथवा कोई दूसरे अंग पुनः बन जाय परन्तु रीढ़ याले जानवर इस सफलताके साथ श्रंगोंका पुनरुद्धार नहीं कर सकते ।. श्री जगमोहनलाल वनस्पतियोंमें राजनैतिक तथा सामाजिक विधान जानवरोंसें बच्चोंके प्रेमसके कारण आचरणके उच्चत्तम लक्षण उत्पन्न होते हैं । मनुष्यमें भी प्रेम तथा भविष्य- की चिन्ता झनेक सामाजिक सदुगुर्णोकी नींव है । उदा- हरणाथ दूसरोंकी भलाईका ख़्यात सोच-विचारकर काम करना श्औौर दूरदर्शिता यहींसे उत्पन्न होते हैं । परन्तु
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