उपवास - चिकित्सा | Upavaas Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९१ ) बहुत बड़े अनथेकी सम्भावना होती है । इस पुस्तकें ओषधियोंके सम्बन्धमें बहुत बड़े-बड़े डाक्टरॉकी जो निन्दात्मक सम्मतियाँ दी गई हैं वे सब एलोपेथिक ओप- घियॉपर ही हैं । ओषधि-चिकित्साकी और भी जितनी प्रणालियाँ हैं वे भी थोड़ी बहुत दूषित और हानिकारक अवश्य हैं । इसका मुख्य कारण यहों है कि ओपधिकी सहायतासे दोनेवाली अस्थायी आरोग्यताकी अपेक्षा शरीरकी स्वसम्पादित आरोग्यता कहीं अधिक अच्छी होती है । शरीरको आरोग्यता प्राप्त करनेका सबसे अच्छा अवसर उसी समय मिठता है जब कि उसकी सारी दाक्तियोंको सब तरहके भारोंसे छुट्ी मिछ जाय और यदद छुट्टी लघन या उपवासकी सहायतासे ही मिल सफती डे । जिरा भोजनका काम हमारे वरीरके अंग-प्रत्यंगको पुष्ट करना है व हमारे अंग-प्रत्यंगके रोगोंको भी अपद्य ही वढ़ाता जायगा व्योंकि उद्धि और पुष्टि काना ही उराका स्वाभाविक धरम है । भोजन करते रहनके अतिरिक्त जहाँ ओपधियां आदिकी सद्दायतासे उसके कायोमें और भी विश्न डाला जाता है बढाका रश्तक स्वर ही है । आपूर्वेरें ढघां परमो- पथम इसीलिए कहा गया है कि उरास शरीर जपनों सवामाधिक और भारोग्य- स्थितितव हुचनेमें बहुत अधिक राहायता निउ्ती है । य्रययद्य रोगसे उपयासकों सहायतास जितनी ज दी छुटकारा मिख्दा है उतनी जदी और कियी उरयय नहीं मिल सकता । और दस पुस्तकमे इसी उपबासक झग प्रकार आर पिघान जाए बताये गये हैं । इस पुस्तकर्म जा बातें बतलाई गई है थे दसीछिए चुत अधिक ददयग्रादी कि न. प्राकृतिक सहज ओर युफि-युक्त हैं । हनारा विखास है कि जो प्रिचारवान्‌ पक्षपातरहित होकर इसमें बतलाई हुई वातांपर ्यान देगा बह बहुत ही सदजमे उनके गुर्णोंको स्वीकार करके उनका समथंक्ध और पश्नपातों बन जायगा औपषधेफि जालसे निकलफझर प्रकृतिदेवीकी गोदमें स्वतन्रतादूजक रदने गंगा । युरोप-अमेरिका आदि देशोंसें बहुतसे उपवास-चिकिएराठ्य रुल गये हैं जिनमे हजारों असाप्य रोगी भी आरोग्यता प्राप्त कर लुफें हैं । उन्हीमेंसे एक चिकितसाठयक अध्यक्ष और संस्थापक बरनर मेकफेडन महाशय भी हें । मंकफेडन साहबका केवल चिकित्सालय दी नहीं है वत्कि उपबारा-चिकिस्साशाप सिखलानेके लिए एक काऊेज भी दे । उस क्रालेजके पहले भारतीय अेजुएट श्रीयुत दाक्टर शावक वो ० मादन हैं




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