शांति लोक | Shanti Lok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.08 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोपाल कृष्ण कौल - Gopal Krishn Kaul
No Information available about गोपाल कृष्ण कौल - Gopal Krishn Kaul
रामधारी सिंह 'दिनकर' - Ramdhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तेरह की थी श्रौर एक शान्ति कां घोषरणा-पत्र प्रकाशित किया था । इस घोषणा-पत्र पर मैकिस्म गोर्की रोमाँरोला रविन्द्रवाथ ठाकुर क्रोंचे श्रॉइस्टीन श्रौर स्टी- फिन ज्विंग जैसे महान लेखंकों श्रौर विचारकों के हस्ताक्षर थे । इन लेखकों के साथ विद्व के एक हजार प्रतिष्ठित लेखकों ने भी इस पर झ्रपने हस्ताक्षर किये थे। द्वितीय महायूद्ध के बाद इस घोषणा-पत्र के अन्त स्वर को ही शान्ति-ग्रान्दोलन के रूप में विकसित किया गया और अनेक शान्ति-प्रपीलो श्र शान्ति के घोषणा-पत्रों पर आधुनिक युग के श्नेक रेखकों कलाकारों ने हस्ताक्ष र॑ किये । शान्ति श्रान्दोलच के बढ़नें से यद्धप्रिय राजनीतिज्ञों ने डर कर उस पर नंये-तये राजनेतिक झ्रोप लगाने दारू कर दिये उन्होंने वैयक्तिंक स्वतंत्रता के नाम पर॑ एक अलग मोर्चा बनाने का प्रयास किया जिससे शान्ति-श्रान्दोलन में फट पदा हो सके लेकिन उनकी घणा और अनास्था ने ही उनके प्रयत्नों का भन््डा फोड़ । कर दिया श्रौर श्राज यद्धप्रिय लोगों को भी युद्ध का समर्थन शान्ति की भाषा में करने के लिये मजबर होना पड़ा है । यदि शान्ति का श्रान्दोलन इसी प्रकार हृढ़ श्रौर अरग्रगामी रहा तो सम्भव है कि जो झाज केवल दवान्ति की भाषा का प्रयोग करते हैं कल उनमें झान्ति की भावना भी पँदा हो नांय । विद्वशान्ति के ्ान्दोलन में भारतीय विचारधारा की देन बहुत महत्व- पूर्ण है । भारत की सांस्कृतिक परम्परा शान्ति की. परमपरा है । द्वितीय महायद्ध के समय महात्मा गाँघी श्रौर टंगोर ने यद्ध श्रौर फासिज्म दोनों का विरोध किया था । गाँघी जी ने किसी भी प्रकार के यद्ध को श्रनचित बताया था श्रौर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने फासिस्ट बबंरता की खुले श्राम निन््दा की थी ॥ गांधी नेता थे श्रौर रवीन्द्रनांथ साहित्यकार लेकिन दोनों की भावना भारतीय संस्कृति के मूल में रहते वाली उप अझहिसा का प्रतिनिधित्व करती है जिसका भारतीय जीवन में सदा एक स्थान रहा ह श्रौर हमारी सँस्कृतिक विरासत के रूप मेंकिसी-त-फिसी प्रकार हमारे जीवन के साथ नत्यी है । इसके बाद भारत की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...