हिंदी की नवीन और प्राचीन काव्य - धारा | Hindi Ki Naveen Aur Prachin Kavya - Dhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.58 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कुंवर सूर्यबली सिंह - Kunwar Suryabali Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ ) है। पर उसकी प्रतिष्ठा करने के लिए उसे विशिष्ट स्वरूप देने के लिए--समहापुमपो की आवश्यकता होती है जो समाज को लवी- नता देती है । ठीक यही बात हिंदी-काव्य के सबंध में भी समभानी चाहिए | प्रेस और युद्ठ का जो गान हिंदी ने अपनी शेशवाचरथा में गाया बह उसकी फ़िशीरावस्था में नीरस हो गया । जनता की परिस्थिति और रुचि के परिवतन के साथ प्रदत्यसुसार हिंदी ही हिंदी ने भी अपनी रागिनी बदल दी । इस- कंबिता का काल- लिए प्रतापी सूर लोक-रजसकारी शशि विभाजन... हो गया । उससे जो सागर उमड़ा उसने पी डित श्रसित आर जजंर जनता के भन की सारी मलिनता और विरूपता हृदय की सारी निष्क्रियता ओर कुरूपता घोकर बहा दी आर उसमें क्मेंरयेवाधिकारस्ते मा फसेपु कदाचन् का पाठ पढ़ाने वाले मुरारि के स्थान मे लोक-रंजन- कारी लीलापुरुपोत्तम श्याम की सुदर सूर्ति की स्थापना कर उसे परम ज्योति से जगमगा दिया । युद्वोत्साह की उमंग के शात होते पर जो खिन्नता उदासी और अकमंण्यता फेल रही थी वह हटी और भगवान् का ्यानंदसय स्वरूप सामने लाया गया । इसके साथ ही तुलसी का मानस उमडा । उसने रूर- सागर को भी मात कर दिया । राजा-रक गृहस्थ-विरक्त साधक- सिद्ध पंडित-मूखें सभी ने उसमें गोते लगाए और उन सबको सनसाना फज् सिला । झाज भारत दरिद्र है पर उस मानस की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...