नाव के पाँव | Naav Ke Paav

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Naav Ke Paav by डॉ जगदीश गुप्त - Dr. Jagdeesh Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फ्ति्ली नाश रो नियाशु के दोनों श्रवों के बीच सारी ज़िन्दगी तिरती जागरण में स्वप्न में सुख दुख सँजोये-- ठीक पुतली की तरह फिरती चिर-शुयन बन शीश पर जब मृत्यु आ घिरती फिर नहीं फिरती नहीं तिरती । थमा




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