व्याकरण कौमुदी पार्ट २ & ३ | Vyakaran Kaumudi Part 2 & 3

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Book Image : व्याकरण कौमुदी पार्ट २ & ३  - Vyakaran Kaumudi Part 2 & 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ब्याकरण-कोमुदी द्वितीय भाग । पह्चछिणफ हादि (1706 ००एुंघट्ट०४०0) चुरा दि (7७91 ००00 ये दस गण द्द (ऐ) साधारण नियम (0लाधावा #प165. | ४। चिभक्ति का अकार अयवा पएकार परे रहने से पूर्व वर्ती अकार का लोप होता है (२) यथा मव-अच्ति भवन्ति सेव ए सेबे । ५1 विभक्ति का म अयवा व परे रहने से पूर्वचर्ती अकार के स्थान में आकार होता है (३) । यथा मव-स भवावः ५. मव-मसु सवामः । ६। अकार के परस्थित आते आधे आतामू आधाम इन कई पर विभक्तियों के आकार के स्थान में इक्ार होता है (४) । यथा सेव-झाते सेवेते सेद-आयधे सेबेथे सेव- आताम्‌ सेवेताम सेव-आधास सेवेधासू। ७। अकार के परस्थित विधिलिड के युसू के प्थानमें इयुस्‌ और याम के स्थान मैं इयम्‌ होता है त्धिन्न समस्त या भाग के स्थान मैँ इ होता है (५) । यथा मव-युस भवेयुः मव-याम्‌ मवेयम्‌ भवच-यात्‌ भदेत्‌ भद-यातम्‌ भवेतम्‌ । ८। भकार के और उ नु इन दोनों आगमों के परस्थित ._ हि विभक्ति का छोप होता है (दे) । यथा भव-हि भव कुरु- हि कु म्णु-हि शरणु । थ॒ु अन्य वण के साथ संयुक्त रहने से हि विभक्ति का छोप नहीं होता । यथा आप्लु-हिं आप्लुहि ।. (१) स्वाद्यदादी जुहोत्या दिडिवादिः स्वादिरिच । तुदादिश्च रुघादिश्च तनक्रया दिल्ुरादयः ॥ (१) अतो गुणे ( ३ ) अंत दीघों यदि | (४) आतो छित । (४0 कठो येयः । (द) मतों है। । उतश्च प्रत्ययादसयो गपूर्व्वाँद्‌ । न श




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